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________________ 84 अपभ्रंश भारती - 9-10 संस्कृत-टीकाओं में 'आरद्द' को जाति-सूचक माना गया है और प्रतीत होता है कि छंद सं. 19 में आए हुए 'कोलिय' शब्द के सहारे इसका अर्थ 'तंतुवाय' किया गया है, किन्तु 'जुलाहा जाति' के अर्थ में यह शब्द अन्यत्र कहीं देखने में अभी तक नहीं आया और फिर 'कोलिय' शब्द भी मात्र 'जुलाहा' अर्थ में ही प्रयुक्त नहीं होता, बल्कि उसका एक अन्य अर्थ 'सत्कुलोद्भव' अर्थात् अच्छे कुल में उत्पन्न भी होता है । अत: डॉ. जैदी द्वारा 19वें छंद का दिया हुआ अर्थ अधिक सुसंगत प्रतीत होता है। उन्होंने लिखा है - 'अपनी कविता की विद्या के माहात्म्य को और उत्तम कुल के (कौलेय>कोलेय>कोलिय) पांडित्य को प्रस्तारित करनेवाला मनुष्य लोक में प्रकाशित अथवा ख्यातिप्राप्त संदेश-रासक सरल भाव में कौतूहल से प्रतिभासित है।' ___पं. चन्द्रकान्त बाली ने 'आरद्द' शब्द को 'आरट्ट' शब्द के रूप में ग्रहण किया है। 'आरद्द' का पाठ-भेद 'आरट्ट' संभव है। आरट्ट का तात्पर्य आधुनिक कथ्य में 'अरोड़ा' प्रसिद्ध है, जो पंजाब की प्रसिद्ध जाति है। उसे वयन जीवी जाति नहीं माना जाता। अथ: विद्या-निष्णात कलाविज्ञ अद्दहमाण का अपनी पैतृक विद्या-संपदा के बल पर सिद्ध-प्रसिद्ध कवि होना स्वाभाविक है। जाति-सूचक अर्थ में पं. बाली के इस उल्लेख को स्वीकार किया जा सकता है और इसमें कोई असंगति भी नहीं है। अद्दहमाण के पिता का 'मीरसेन' नाम भी ध्यान देने योग्य है। विद्वानों ने इसके 'मीर' एवं 'सेन' पदों में भी विसंगति मानी है। उनके विचार में 'मीर' मुस्लिम सूचक है और 'सेन' हिन्दूउपाधि है। श्री विश्वनाथ त्रिपाठी ने 'मीरसेन'को'तानसेन' से मिलाया है। वे लिखते हैं-'मीरसेन की ही भांति मुसलमान कहे जाने वाले प्रसिद्ध गायक तानसेन के नामान्त में भी सेन है। कुछ लोगों के अनुसार तानसेन जन्म-जात मुसलमान नहीं थे। इसीलिए त्रिपाठीजी के विचार में 'मीरसेन' भी धर्मान्तरित मुसलमान थे, किन्तु ऐसा विचार भ्रमात्मक ही है। एक प्रकार से यह सही है कि 'मीर' मुस्लिम सूचक भी है, क्योंकि 'मीर' शब्द सैयद जाति का द्योतक रहा है और 'सेन' शब्द साधारणत: मुस्लिम नाम के पीछे लगा हुआ मिलता भी न है, किन्तु हिन्दुओं में तो नामान्त पद 'सेन' वाले नामों का प्राचीन समय से ही पर्याप्त प्रचलन रहा है। अत: मीरसेन के 'मीर' पद पर विशेष ध्यान की आवश्यकता है। मेरा विचार है कि यह 'मीर' पद मुस्लिम सूचक न होकर किसी अन्य शब्द का विकृत रूप है, क्योंकि हिन्दुओं में 'मिहिर सेन', 'मिहीं सेन' ध्वनि साम्यवाले जैसे नामों का प्रचलन रहा है। संभव है, यह 'मिहिर' का ही अपरूप हो। वैसे 'मीर' संस्कृत में 'समुद्र' वाची शब्द भी है अर्थात् मीर शब्द का अर्थ'सागर' है। अत: मेरी राय में 'मीर सेन' (मिहिर सेन) शुद्ध हिन्दूवाचक शब्द है। उक्त विचारणा के आधार पर पूरे परिचय-पद (सं. 3-4) का अर्थ इस प्रकार होगा"पश्चिम दिशा में म्लेच्छ नामक देश (मुल्तान या निकटवर्ती भू-भाग) है, जो पूर्व में बहुत प्रसिद्ध है। वहाँ (उस विषय 'प्रदेश' में) मीरसेन का (मीरसेणस्स) पुत्र उत्पन्न हुआ अथवा उस प्रदेश में आरट्ट (अरोड़ा) जातीय मीरसेन हुआ। उसके पुत्र-अद्दहमाण ने, जो अपने कुल
SR No.521857
Book TitleApbhramsa Bharti 1997 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size10 MB
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