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________________ अपभ्रंश भारती 9-10 है । तन-मन में स्थापित लिखित, उत्कीर्ण भार्या का सौन्दर्य उसे ऐसा प्रतीत होता है मानो देव ने हृदय में रखकर बहुत गहरी कील ठोक दी हो। नील कमलवत कोमल श्यामलांगी, नवयौवन की लीला से ललित एवं पतली देहयष्टिवाली वधू के स्मरण में वह अपनी पीड़ा को भूलकर कहता है - अपनी रूपऋद्धि से मन को हरनेवाली मुग्धे । शोक है कि तू मेरे बिना काम से पीड़ित हुई होगी 68 - नीलकमलदल कोमलिए सामलिए, नवजोव्वणलीलाललिए पत्तलिए । रूवरिद्धिमणहारिणिए मारिणिए, हा मइंविरणुमयणे नडिए मुद्धडिए ॥ 2.15.3-4 बारह वर्ष बाद अपने गृहस्थ जीवन के ग्राम में आगमन, आहारोपरान्त एकाकी प्रस्थान का सुअवसर, सुरतक्रीड़ा के आकर्षण की कल्पना, विषयसुख भोगने की तीव्र लालसाघुक्त मुनि भवदेव का शीघ्रता से जाना, स्वगत कहना मैं अपने मन को अपनी धन्या से प्रसन्न करूंगा, उत्कंठापूर्वक प्रगाढ़ आलिंगन करूंगा, नखचिह्नों से स्तनमंडल को मंडित करूंगा, अधरबिंब दांतों से काटूंगा।' गाँव के बाहर जिनालय में स्थित क्षीणकाय नारी से अपनी पूर्व पत्नी नागवसू की जानकारी प्राप्त करना आदि उसके कामातुर व्यक्ति के विरह को चित्रित करते हैं । - विरहाग्नि संतप्त मुनि भवदेव का शीघ्रता से प्रस्थान, उसके हृदय के उद्गार, उसके रति भाव को जगा कर विप्रलंभ श्रृंगार का बोध कराते हैं। हास्य रस के अनुभाव विचित्र वेशभूषा धारण करना, उल्टे-सीधे आभूषण पहन लेना, उल्टी-सीधी बातें करना, असंगत कार्य करना, विचित्र मुख-मुद्राएं बनाना आदि हास्य रस के विभाव हैं।" इन कार्यों को करनेवाला जब स्वयं अपने आप पर हँसता है अथवा इन्हें देखकर अन्य पात्र हँसते हैं तब वह हँसना हास्यरस का अनुभाव होता है। 12 हँसना छह प्रकार का होता है- उत्तम प्रकृति के लोग जिस प्रकार हँसते हैं उसे स्मित और हसित कहते हैं। मध्यम प्रकृति के लोगों के हँसने की शैली का नाम विहसित और उपहसित है तथा अधम प्रकृति के लोगों के हँसने का तरीका अपहसित और अतििहसित कहलाता है । 13 जिस हँसी में गाल कुछ खिल जाते हैं, दृष्टि में शालीनता रहती है तथा दाँत दिखाई नहीं देते उस संयत हँसी को स्मित हास्य कहते हैं।14 जिसमें मुख और नेत्र खुल जाते हैं, गाल और अधिक विकसित हो जाते हैं तथा दाँत कुछ दिखलाई देने लगते हैं उस हँसी का नाम हसित है 15 जिस हंसी में आँखें और गाल सिकुड़ जाते हैं, मुँह लाल हो जाता है तथा मुँह से खिलखिलाहट निकल पड़ती है ऐसी उचित समय पर होनेवाली मधुर हँसी विहसित कहलाती है ।" जिसमें नाक फूल जाती है, मनुष्य टेढ़ी दृष्टि से देखने लगता है, अंग और सिर झुक जाते हैं तथा मुँह से कहकहे फूट पड़ते हैं उस हँसी का नाम उपहसित है।” जो हँसी अनुचित अवसर पर उत्पन्न होती है जिसमें आँखों से आँसू निकल पड़ते हैं। कन्धे और सिर हिलने लगते हैं और मनुष्य ठहाका लगाने लगता है वह अधम प्रकृति के लोगों की हँसी अपहसित कहलाती है।
SR No.521857
Book TitleApbhramsa Bharti 1997 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size10 MB
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