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अपभ्रंश भारती - 9-10 60. "विहडंत वीरे सहुकार कारं पल्लिपंत, सत्तच्चि धूमं धयाएं।
महुड्डी णभुलीण कीला उलयं, समुद्दत पग्गुग्ग वेयाल रुयं ॥"
महापुराण, पुष्पदन्त, खण्ड 3, संधि 3, पृष्ठ 33 । 61. "धरिउ कुमार सीहउरे दरु णाइ, णिडप्पे खयदिणणेसरु।"
णायकुमार चरिउ, पुष्पदन्त, डॉ. हीरालाल जैन, संधि 7, पृष्ठ 118 । 62. णाय कुमार चरिउ, संधि 6, पृष्ठ 104। 63. "पवण कसण गंधो रकरंवउ, उप्पर जंतु वणवर विवउ॥"
महापुराण, पुष्पदन्त, भाग 1, संधि 2, पृष्ठ 23 ।
मंगल कलश 394, सर्वोदय नगर, आगरा रोड, अलीगढ़-202001