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30. ए हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर, ए. बी. कीथ, ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी प्रेस, पृष्ठ 338 । 31. हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, डॉ. नामवर सिंह, लोक भारती प्रकाशन, इलाहाबाद, पृष्ट 283 ।
32. हिन्दी शब्द सागर, द्वितीय भाग, बाबू श्यामसुन्दर दास, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, पृष्ठ 862 ।
33. हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, डॉ. धीरेन्द्र वर्मा, ज्ञान मण्डल लिमिटेड, वाराणसी, पृष्ठ 208-91
34. काव्यमीमांसा, राजशेखर, केदारनाथ सारस्वत, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, पृष्ठ 210-141
38.
अपभ्रंश भारती
35. काव्यमीमांसा, राजशेखर, केदारनाथ सारस्वत, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, पृष्ठ 215-161
36. वही, पृष्ठ 195
37. सौन्दर्यतत्त्व निरूपण, डॉ. एस. टी. नरसिंहचारी, वाणी प्रकाशन, दिल्ली ।
"
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'कमला सण कमला कमल मुहि तुहि मुहु कमलु णिहलई । '
43.
- 9-10
महापुराण, पुष्पदन्त, भाग 2, डॉ. देवेन्द्रकुमार जैन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, दिल्ली, संधि 24 पृष्ठ 196।
39. 'बहुविलासिणी यलियणयावासिणी । '
महापुराण, भाग 2, संधि 41 पृष्ठ 80।
40. "कहु अग्गइ धावइ कमल करि कमलालव कमलाण मियसिरि।"
महापुराण, भाग 2, संधि 15, पृष्ठ 33।
41. "नई सुम सुमइ सम्मय पयास जय पउम प्पहुपउ माणि वासु । "
जसहरचरिउ, पुष्पदन्त, डॉ. हीरालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, दिल्ली, संधि 1, पृष्ठ 21
42. "लच्छी पो मिणिमाणस सरेण " ।
णायकुमार चरिउ, पुष्पदन्त, डॉ. हीरालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, दिल्ली,
संधि 1, पृष्ठ 4 |
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'सा सिरिजा गुणाणय गुणये जेगय गुणहि चित्तहय दुरिड" ।
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