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अपभ्रंश भारती
इसके अतिरिक्त कामदेव के वाणों को पुष्पमय ", कामदेव के धनुष की प्रत्यंचा भ्रमर तथा भौंहें मानी गई हैं। 57 नीर-क्षीर विवेक कविसमय के अनुसार हंस का वर्णन पानी और दूध को अलग-अलग कर देनेवाले के रूप में वर्णन मिलता है 58 विवेच्य कवि ने हंसों की कतार को सज्जनों की चलती-फिरती कतार कहा है 159
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उलूक को दिवस में दिखलाई नहीं देता । वह एतदर्थ रात्रि में भ्रमण करता है । इस कविसमय का महाकवि पुष्पदन्त द्वारा अनेक विधि वर्णन हुआ है।" प्रलय काल में राहु सूर्य को ग्रसित कर लेता है। इसी कविसमय के आधार पर विवेच्य कवि ने सिंह पुराधीश को नागकुमार के द्वारा बाँध लिया वर्णित किया है।" जिस प्रकार राहु चन्द्रमा को निष्प्रभ कर देता है, उसी प्रकार व्याल सोम प्रभ को श्री हीन कर के छोड़ देता है 12 कालीगंध से युक्त थाल ऐसा प्रतीत होता है मानों राहु से ग्रसित नवसूर्य हो । 63
इसके अतिरिक्त स्त्री तथा पुरुष के अंग विशेष के लिए प्रयुक्त रुढ़ तथा नवीन उपमानों का प्रयोग विवेच्य काव्य में कविसमय के रूप को स्वरूप प्रदान करता है। कविसमयपरक अध्ययन और अनुशीलन करने से कवि के विस्तृत ज्ञान तथा कल्पना शक्ति का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। इस प्रकार विवेच्य महाकवि की काव्य प्रतिभा का परिचायक यह कथन - 'जहाँ पहुँचे न रवि, वहाँ पहुँचे कवि' पूर्णत: चरितार्थ होता है ।
इत्यलम् ।
1. णाय कुमार चरिउ, पुष्पदन्त, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, पृष्ठ 174 ।
2. वही पृष्ठ 21
3. संक्षिप्त जैन साहित्य का इतिहास, भाग 3, खण्ड 4, बाबू कामता प्रसाद जैन, पृष्ठ 152 । 4. णायकुमार चरिउ, पुष्पदन्त, पृष्ट 21
5. महापुराण भाग 1, पुष्पदन्त, डॉ. देवेन्द्र कुमार, भारतीय ज्ञान पीठ, दिल्ली, पृष्ठ 4। 6. संक्षिप्त जैन साहित्य का इतिहास, भाग 3, खण्ड 4, बाबू कामता प्रसाद जैन, पृष्ठ 77।
7. (अ) महापुराण, पुष्पदन्त, सं. परशुराम वैद्य, माणिकचन्द्र दि. ग्रंथ माला समिति। (ब) महापुराण, सम्पूर्ण भाग, पुष्पदन्त, डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली ।
8. णायकुमार चरिउ, पुष्पदन्त, डॉ. हीरालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली ।
9. जसहर चरिउ, पुष्पदन्त, डॉ. हीरालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली ।
10. समयसार, आचार्य कुंदकुंद, प्रथम अधिकार, गाथा 2-3 |