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अपभ्रंश भारती - 9-10
महाकवि पुष्पदन्त वस्तुतः बुद्धिमान और विद्वान कवि थे। उनके विपुल काव्य में काव्य शास्त्रीय निकष के अनुसार सभी कोटि के कविसमयों को स्थान दिया गया है, अस्तु 'पुष्पदन्तकाव्य में प्रयुक्त कविसमय' विषयक एक स्वतंत्र अध्ययन और अनुशीलन की आवश्यकता है तथापि यहाँ उनके काव्य में कतिपय 'कविसमयों' की चर्चा करना आवश्यक समझता हूँ।
लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र-मंथन से मानी जाती है तथा कमल का वास भी जल में ही होता है। इस दृष्टि से भी इनमें अभिन्न तादात्म्य स्थिर होता है।
लक्ष्मी को कमला भी कहा जाता है । कमला कहने के मूल में कमल-लक्ष्मी का स्नेह भाव ही परिलक्षित होता है। महाकवि पुष्पदन्त ने लक्ष्मी को कमला, पद्मावती, कमलमुखी, कमल घर लक्ष्मी तथा कमल को कमलाकर आदि कहा है ।28।
तीर्थंकर की माता को दिखनेवाले सोलह स्वप्नों में कमल में निवास करनेवाली लक्ष्मी का वर्णन किया गया है। एक अन्य स्थल पर लक्ष्मी को कमल हाथ में लिये हुये कमल में निवास करनेवाली कमलमुखी कहा गया है । . चतुर्विंशति स्तुति करते समय पद्मप्रभु को लक्ष्मी के गृह में निवास करनेवाले पद्मप्रभु कहकर सम्बोधित किया गया है। अमात्यनेत्र का वर्णन करते समय उसको पद्मिनी लक्ष्मी का मानसरोवर कहा गया है। 42 सौन्दर्य भाव की अधिष्ठात्री है लक्ष्मी। कवि समय के अनुसार स्त्रीसौन्दर्य की समता लक्ष्मी से की गई है। विवेच्य कवि भी लक्ष्मी उसी को मानते हैं जो गुणों से नत हो। तीर्थंकर ऋषभदेव की माँ मरुदेवी सोलह स्वप्नों में लक्ष्मी को देखती है। स्वप्न-फल पूछने पर राजा लक्ष्मी देखने का फल बतलाते हुए कहते हैं कि तुम्हारा पुत्र त्रिलोक की लक्ष्मी का स्वामी होगा लक्ष्मी का एक नाम चंचला भी है। इसी प्रवृत्ति के कारण विवेच्य कवि ने इसे एक स्थान पर कभी स्थिर न रहनेवाली स्वेच्छाचारिणी कहा है।
मूर्त-और-अमूर्त रूप में कामदेव विषयक कवि समय का प्रयोग णायकुमार चरिउ में इस प्रकार उल्लिखित है कि देवताओं के कहने पर कामदेव ने भगवान् की समाधि में विघ्न डाला था। उन्होंने क्रोधित होकर अपने तृतीय नेत्र की ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया।
नायक-नायिका के सौन्दर्य वर्णन में उनको क्रमशः कामदेव और रति कहकर उनके मूर्तरूप का ही चित्रण किया जाता है। विवेच्य कवि ने बाहुबलि' रतिसेन 48 आदि तथा जयंधर नागकुमार को साक्षात् कामदेव, मन्मथ, मकरध्वज आदि कहा गया है । हनुमान स्वयं बीसवें कामदेव तथा राम मनुष्यरूप में स्वयं कामदेव के रूप में उल्लिखित हैं ।
राजा वैधव्य के पुत्र को मकरध्वज कहते हुये कवि कहता है कि मकरध्वज तो अरूपी है । उसे रूप कैसे दिया जाय । अभयरुचि अपना पूर्वभव बतलाते हुए कहते हैं कि मैं अर्थात् यशोधर
कुमारकाल में अंगधारी स्वयं अनंग था।