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अपभ्रंश भारती
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मेरी समझ से लोक कवि की यह धारणा स्वान्तः सुखाय की आदि धारणा है और इसमें उसे पर्याप्त सफलता भी मिली है।
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जीवन-मूल्यों का सन्दर्भ लोकाचार से अन्यान्य भाव से जुड़ा होता है और कृतिकार तथा कृति अगर लोक से परिचित न हों (गहरे रूप में) तो सृजन - कर्म पूर्ण होगा- इसमें संदेह की मात्रा ही अधिक रहेगी । पउम चरिउ का कवि लोक कवि है और दृष्टि - समर्थ भी ।
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दृष्टव्य है
1. प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य, रामसिंह तोमर ।
2. पउम चरिउ - विद्याधर काण्ड, देवेन्द्रकुमार जैन ।
3. अपभ्रंश का जैन साहित्य और जीवन मूल्य, साध्वी साधना ।
4. विशेष सन्दर्भों में
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हिन्दी - जाति का साहित्य, डॉ. रामविलास शर्मा ।
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तथा
'हिन्दी साहित्य का इतिहास - पुनर्लेखन की समस्याएँ' में डॉ. रामकृपाल पाण्डेय का लेख - हिन्दी साहित्य का आरम्भ कब से मानना चाहिए ?
तथा
हिन्दी साहित्य उद्भव और विकास, डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ।
हिन्दी भवन, शान्ति निकेतन विश्वभारती - पश्चिम बंग पिन कोड
731235
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