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________________ अपभ्रंश भारती 9-10 मेरी समझ से लोक कवि की यह धारणा स्वान्तः सुखाय की आदि धारणा है और इसमें उसे पर्याप्त सफलता भी मिली है। - जीवन-मूल्यों का सन्दर्भ लोकाचार से अन्यान्य भाव से जुड़ा होता है और कृतिकार तथा कृति अगर लोक से परिचित न हों (गहरे रूप में) तो सृजन - कर्म पूर्ण होगा- इसमें संदेह की मात्रा ही अधिक रहेगी । पउम चरिउ का कवि लोक कवि है और दृष्टि - समर्थ भी । 1 दृष्टव्य है 1. प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य, रामसिंह तोमर । 2. पउम चरिउ - विद्याधर काण्ड, देवेन्द्रकुमार जैन । 3. अपभ्रंश का जैन साहित्य और जीवन मूल्य, साध्वी साधना । 4. विशेष सन्दर्भों में - हिन्दी - जाति का साहित्य, डॉ. रामविलास शर्मा । 33 तथा 'हिन्दी साहित्य का इतिहास - पुनर्लेखन की समस्याएँ' में डॉ. रामकृपाल पाण्डेय का लेख - हिन्दी साहित्य का आरम्भ कब से मानना चाहिए ? तथा हिन्दी साहित्य उद्भव और विकास, डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी । हिन्दी भवन, शान्ति निकेतन विश्वभारती - पश्चिम बंग पिन कोड 731235 -
SR No.521857
Book TitleApbhramsa Bharti 1997 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size10 MB
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