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अपभ्रंश भारती
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7. अलियं पि सव्वमेयं उववत्ति विरुद्धपच्चगुणेहिं ।
न य सद्दहंति पुरिसा हवंति जे पंडिया लोए ॥ एवं चिंतंतो च्चि संसय परिहार कारणं राया ।
जिण दरिसणुस्सुयमणो गमणुच्छाहो तओ जाओ ॥ - 2.917-18 पउमचरिउ ।
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8. डॉ. संकटाप्रसाद उपाध्याय, महाकवि स्वयंभू, पृ. 46, भारत प्रकाशन मंदिर, अलीगढ़ । 9. डॉ. कामिल बुल्के, रामकथा, पृ. 366, हिन्दी परिषद् प्रकाशन, प्रयाग वि. वि. प्रयाग । 10. डॉ. संकटाप्रसाद उपाध्याय, महाकवि स्वयंभू पृ. 47, भारत प्रकाशन मंदिर, अलीगढ़ । 11. डॉ. नाथूराम प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास, पृ. 279 ।
12. वही, पृ. 280
13. वही ।
14. डॉ. हरिवंश कोछड़, अपभ्रंश साहित्य, पृ. 40, भारती साहित्य मंदिर, दिल्ली । 15. भाउर - सुअ - सिरिकहराय-तणय-कय-पोमचरिय अवसेसं । प्रशस्ति पद 15 | 16. जिन - रत्नकोश में पउमचरिउ का वर्णन इसी नाम के अन्तर्गत हुआ है ।
17. रामायणस्स सेसे अट्णसीमो इम्मो सग्गो । प.च., 88 संधि के अंतिम घत्ता से उद्धृत । 18. इय रामएवचरिउ धणंजयासिय सयम्भुएव - कए । प.च., 18वीं संधि के अंतिम घत्ता से उद्धृत ।
19. बंदउ - आसिय- तिहुयण सयम्भु परिरइय- रामचरियस्स । प.च., 86 संधि के अंतिम घत्ता से उद्धृत ।
20. पुणु अप्पावउ पायउमि रामायण - कावे । प.च. 1, 1, 19।
21. आरम्भिक पुणु राघव - चरिउ । 23, 1, 19 ।
22. राम कहा गई एह कमागया 1, 2, 1।
23. डॉ. विपिन बिहारी त्रिवेदी, अपभ्रंश प्रवेश, पृ. 24, पारुल प्रकाशन, लखनऊ । 24. जगे लोएंहिं ढक्करिवन्तएहि । उप्पाइर मंतिउ मंतएहिं ॥
सो मंदोवरि जणणि सम, किह लेइ विहीसणु ॥ 1, 10
25. लंकाडरिहि पइट्ठ अविचल रज्जें परिट्ठिउ ।
रक्खस- वंसहों णाई पहिलउ कन्दु समुट्ठिउ ॥ प.च. 1, 5, 9 26. सीयहे देह रिद्धि पावन्तिहें । एक्कु दिवसु दप्यणु जोयन्तिहें ॥
पडिमा छलेण महा-भय-गारउ । आरिस - वेसु णिहालिउ णारउ ॥ जणय-तवय सहसत्ति पणट्ठी । सीहागमणे कुरंगि व तुट्ठी ॥ 21, 27. पेक्खन्तहो जणहो सुरकरि- -कर-पवर- पचण्डैं हि
यट्टु णिवद्ध सिरे रहु- सुएण स यं भुव - दण्डेंहि ॥ 22, 9