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अपभ्रंश भारती - 9-10
19 में प्रस्तुत किया गया है। वैसे इस संबंध में तो जैन धर्म का ही प्रभाव है क्योंकि जैनधर्म में राम, लक्ष्मण के समान रावण को भी त्रिषष्टि महापुरुष माना गया है, इस कारण उसका चित्रण तो उज्ज्वल रूप में चित्रित करना स्वाभाविक ही है । तथापि पुष्पदंत ने अपभ्रंश रामकाव्य परम्परा को अपना योगदान दिया तथा इस प्रकार गुणभद्राचार्य की रामकाव्य परम्परा को आगे बढ़ाया। __ पुष्पदंत के उपरान्त चंदवरदायी ने अपने महाकाव्य 'पृथ्वीराजरासो' के द्वितीय प्रस्ताव में राम कथा का वर्णन किया है। इस प्रस्ताव का नाम 'अथ दसम लिख्यते' है, प्रस्ताव के अंत में लिखा है - "इति श्री कविचंद विरचिते पृथ्वीराजरासो के दसावतार वर्णन नाम द्वितीय प्रस्ताव सम्पूर्ण । इसी दोहे के अनुसार ही इस प्रस्ताव में दसावतारों की चर्चा की गई है।
'पृथ्वीराजरासो' के द्वितीय प्रस्ताव या समय, जिसमें राम कथा की चर्चा की गई है, को प्रथम प्रस्ताव के अंत से जोड़ा गया है। प्रथम प्रस्ताव के अंत में कवि-पत्नी मुक्ति प्रदान करने वाले हरिरस के विविध वर्णनों के संबंध में जिज्ञासा करती हैं, कवि उत्तर में उनसे ध्यानपूर्वक
दशावतारों का वर्णन सुनने हेतु कहते हैं। इस प्रकार द्वितीय प्रस्ताव के दसावतारों की भूमिका • की पृष्ठभूमि प्रथम प्रस्ताव के अंत में ही निर्मित कर दी गई है। इन दसावतारों में क्रमशः मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध तथा कल्कि की कथा को 584 छंदों में वर्णित किया गया है। रामावतार की चर्चा 38 छंदों में की गई है। रामकथा 231 से लेकर 263 छंदों में कही गई है। कवि चंद राम तथा कृष्ण की व्यापक तथा महान् कथा को वर्णित करने हेतु अपार समय की आवश्यकता पर बल देते हुये कहते हैं -
राम किसन कित्ती सरस। कहत लगैं बहबार॥
हुच्छ आव कवि चंद की। सिर चहुआना भार॥ छं. 585, सं. 2 कवि चंद आगे के छंद में वाल्मीकि का भी नाम लेते है। इस संबंध में डॉ. त्रिवेदी का मत है कि अजमेर तथा जयपुर के संग्रहालयों में संगृहीत बारहवीं सदी की अनेक विष्णु की मूर्तियाँ इस बात का प्रतिपादन करती हैं कि पृथ्वीराज के काल में वैष्णव मत प्रचलित था तथा दशावतार भी जनता में पूज्य थे। 'पृथ्वीराज विजय महाकाव्यम्' के प्रणेता जयानक ने भी कुमार पृथ्वीराज के कंठ में दशावतार आभरण पहनाने का उल्लेख किया है जो रासो युग में विष्णु की महिमा का द्योतक है। रासो के दशावतारों के वर्णन का क्रम 'श्रीमद्भागवत' तथा 'विष्णुपुराण' के अनुसार है।”
रासो के रामावतार की विशेषता यह है कि इसमें पात्रों का चित्रण मुख्य रूप से वीर तथा रौद्र रूप में ही किया गया है, वैसे ओजस्विता के साथ वर्णन करना स्वाभाविक भी है क्योंकि ओज रासो काव्य की सर्वप्रमुख विशेषता है । रासो काव्यों में वर्णन शैली, शब्दयोजना, कथानक प्रभृति समस्त योजनायें ओज गुण को ही केन्द्र में रखकर वर्णित की जाती हैं। । रामावतार के प्रथम चार छंदों में, परशुराम द्वारा क्षत्रियों का संहार तथा ब्राह्मणों को पृथ्वीदान अयोध्यानरेश दशरथ के घर में राम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न का जन्म, कैकेयी द्वारा भरत को राजसिंहासन तथा राम को वनवास देने की माँग तथा राम-लक्ष्मण का पंचवटी जाकर कुटी बनाना