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अपभ्रंश भारती
भाँति भामंडल के उद्यान में छिपकर सीता का चित्र नहीं रखते वरन् प्रत्यक्ष रूप से भामंडल के सम्मुख उपस्थित होकर सीता का चित्र भामंडल को दिखाकर उसे आसक्त करने का प्रयास करते हैं ।
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दशरथ विरक्ति का प्रसंग भी स्वयंभू ने अधिक उदारता तथा परिपक्वता के साथ व्यंजित किया है। स्वयंभू ने सुप्रभा का चित्रण अधिक स्पष्टता के साथ-साथ गरिमामय रूप में किया है । जिन प्रतिमा के प्रक्षालन का गंधोदक लेकर कंचुकी अपनी वृद्धावस्था के कारण कुछ देर
रानी सुप्रभा के पास पहुँचता है यद्यपि रानी इस विलंब को अपना अपमान समझती हैं परन्तु फिर भी वे उस पर कुपित नहीं होतीं, वे मात्र दशरथ को उलाहना देती हैं। जबकि रविषेण के अनुसार रानी विलंब से कंचुकी के वहाँ पहुँचने को अपना अपमान समझती हैं तथा आत्मघात का संकल्प कर लेती हैं। दशरथ भी विलम्ब से आने के कारण कंचुकी पर कुपितं होने लगते हैं परन्तु वृद्धावस्था में शरीर की जीर्णता तथा असमर्थता को कंचुकी इतने सारगर्भित रूप में प्रस्तुत करता है कि दशरथ को जीवन तथा संसार से विरक्ति हो जाती है। अंत में दशरथ सर्वभूतहित नामक मुनि की प्रेरणा से जिन भक्ति में अनुरक्त हो जाते हैं, स्वयंभू ने इन मुनि का नाम सत्यभूति उल्लिखित किया है ।
स्वयंभू ने राम के व्यक्तित्व को महिमामंडित करने का प्रयास कई प्रसंगों में किया है। ऐसा ही एक प्रसंग राम वनवास के समय का है जब राम भरत के सिर पर राजपट्ट बाँधते हैं 27 तथा दूसरी बार भी जब भरत राम से अयोध्या वापस चलने का अनुरोध करते हैं तब पुनः राम उनके सिर पर राजपट्ट बाँधते हैं। 28 स्वयंभू का यह प्रसंग विमल तथा रवि के रामकाव्यों में नहीं प्राप्त. होता है।
शम्बूक - वध के उपरान्त 'पद्मचरित' में खरदूषण सहायतार्थ रावण के पास समाचार भेजता है जबकि ‘पउमचरिउ' के अनुसार खरदूषण समाचार नहीं वरन् पत्र भेजता है ।
रावण जब सीता का हरण करके लाता है तो सीता को आकृष्ट करने के लिये वह उन्हें यान में बैठाकर लंका का वैभव दिखाने जाता है ।" यह प्रसंग स्वयंभू की मौलिक कल्पना है । पूर्ववर्ती काव्यों में इसका वर्णन नहीं मिलता है।
सीता हरण के उपरान्त राम जब सीता को कुटिया में खोजते हैं तथा जब सीता उन्हें नहीं मिलती है तो राम उनके वियोग में आहत होकर मूर्च्छित हो जाते हैं। यह प्रसंग विमल तथा रवि के रामकाव्यों में नहीं उपलब्ध होता है ।
स्वयंभू ने सीता का चित्रण अत्यन्त मनोवैज्ञानिकता के साथ किया है। स्वयंभू की सीता नंदनवन में अकस्मात् राम प्रदत्त अँगूठी को अपनी गोद में देखकर क्षणभर के लिये शंकित हो जाती हैं। वे अपनी आत्मसंतुष्टि हेतु हनुमान की परीक्षा लेती हैं तथा अनुकूल उत्तर पाकर ही विश्वास करती हैं।3° रविषेण के अनुसार सीता हनुमान को तुरन्त बुला लेती हैं ।
इसी प्रकार अंगद को रावण की सभा में भेजा जाना, सीता के सतीत्व को प्रमाणित करने हेतु त्रिजटा का लंका से अयोध्या आना, सीताहरण के पश्चात् लंका पर विपत्ति आने का सूचक,