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________________ अपभ्रंश भारती - 9-10 अक्टूबर - 1997, अक्टूबर - 1998 अपभ्रंश रामकाव्य परम्परा में 'पउमचरिउ' - सुश्री मंजु शुक्ल 'रामकथा' विश्व वाङ्मय में भारतीय संस्कृति, धर्म साधना तथा काव्यचेतना की सशक्त प्रतिनिधि है। रामकथा भारतवर्ष की सर्वाधिक प्रचलित कथा है, इस पर भारतवर्ष में ही नहीं वरन् विदेशों में भी विपुल साहित्य रचा गया है। रामकथा की लोकप्रियता का सर्वप्रमुख कारण राम का 'शक्ति, शील तथा सौंदर्य' के गुणों से समन्वित व्यक्तित्व है, जिसमें 'ब्रह्मत्व' तथा 'मनुजत्व' की सहस्थिति सर्वत्र परिलक्षित होती है। लौकिकता तथा अलौकिकता को एक साथ प्रतिष्ठित करते हुये मानवता को इतना उच्च एवम् उदात्त संदेश देने वाली सर्वांगीण कथा संभवतः अन्यत्र दुर्लभ है। रामकथा हिंदू धर्मग्रंथों तथा हिन्दी साहित्य में ही काव्य सृजन का विषय नहीं बनी, इसे जैनों तथा बौद्धों ने भी अपना काव्यविषय बनाया। पौराणिक चरित्रों में राम तथा कृष्ण का चरित्र मुख्य था। इन धार्मिक लोकनायकों को आधार बनाकर जैनाचार्यों ने पौराणिक चरित काव्यों की रचना की। जैनियों ने इन लोकनायकों को जैनधर्म के आदर्शों के अनुसार प्रतिष्ठित किया। रामकथा अपभ्रंश के पूर्व ही संस्कृत, पालि तथा प्राकृत के धर्मानुयायियों द्वारा जनसामान्य में प्रचारित की जा चुकी थी। संस्कृत में वर्णित रामकथा ही परवर्ती साहित्यकारों के लिये काव्य-सृजन का आधार बनी। आदिकवि वाल्मीकि की रामायण को ही किंचित परिवर्तन तथा
SR No.521857
Book TitleApbhramsa Bharti 1997 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size10 MB
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