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अपभ्रंश भारती - 9-10 मनीषियों द्वारा प्रतिपादित संयम के महत्व को स्वीकार कर अपनी उद्दाम और उच्छृखल वासनाओं को नियंत्रित करने का प्रयत्न करे तथा प्राणिमात्र के प्रति प्रेम और सौहार्द्र से अभिभूत हो, उनकी रक्षा में तत्पर हो जाए तो निश्चय ही वह स्वयं असीम आत्मिक सुख का रसास्वादन करने के साथ-साथ समाज को भी भयमुक्त स्वच्छ वातावरण प्रदान कर उसके सुख-शान्ति में सहायक बन सकता है।
1. पद-87, कबीर ग्रन्थावली। 2. 9, मन को अंग, कबीर ग्रन्थावली। 3. 20, मन को अंग, कबीर ग्रन्थावली। 4. 23, जीवाजी को अंग, कबीर ग्रन्थावली। 5. पद-41, कबीर ग्रन्थावली। 6. पद-39, कबीर ग्रन्थावली। 7. सन्त कबीर, डॉ. रामकुमार वर्मा, पृ. 49, पद-45 ।
अलका, 35, इमामबाड़ा मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)