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अपभ्रंश भारती - 9-10 'पउमचरिउ' में गुंजायमान संगीत तथा नृत्य विद्याधरकाण्ड (1) दूसरी संधि, अभिषेक के प्रारंभ होने की भेरी बजा दी गयी। देवों के अनुचरों के हाथों
से तड़ित पटह भी बजने लगे। किसी ने चार प्रकार के मंगलों की घोषणा की। किसी ने स्वर-पद और ताल से युक्त गान प्रारम्भ कर दिया। किसी ने सुंदर वाद्य बजाया जो बारह ताल और सोलह अक्षरों से युक्त था। किसी ने भरत नाट्य प्रारम्भ किया जो आठ भावों से युक्त था। किसी ने बड़े-बड़े स्तोत्र प्रारम्भ कर दिये। किसी ने वेणु, किसी ने वर वीणा ले ली। कोई वीणा के स्वर में लीन हो गया।०० आठवीं संधि में बताया गया है कि रथनूपुर नगर के राजा सहस्रार ने अपनी गायिकाओं के नाम इंद्र की गायिकाओं के नाम के आधार पर रखे थे जैसे- उर्वशी, रम्भा, तिलोत्तमा
इत्यादि। (2)
तेरहवीं संधि के अंतर्गत रावण की गायन विद्या को वर्णित किया गया है - पूजा करने के बाद रावण ने अपना गान प्रारम्भ किया। वह गान मूर्च्छना, क्रम, कम्प और त्रिगाम, षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत तथा निषाद इन सप्तस्वरों से युक्त था। मधुर, स्थिर तथा लोगों को वश में करने में समर्थ अपनी वीणा से रावण ने मधुर गंधर्व गान किया।102 वह संगीत अलंकारसहित सुस्वर, विदग्ध तथा सुहावना था, सुरति तत्त्व की तरह आरोह, अवरोह, स्थायी तथा संचारी भावों से परिपूर्ण था। टीका, राग युक्त था। मंदतार तथा तानयुक्त था। ज्या और जीवन सहित था तथा रागविशेष था।103 उन्नीसवीं संधि में भी एक गंधर्व द्वारा गाये जाने वाले गंधर्वमान का उल्लेख किया
गया है। 104 (3) बत्तीसवीं संधि के अंतर्गत राम का वीणा-वादन, सीता का नृत्य तथा लक्ष्मण का गान
व्याख्यायित किया गया है - राम सुघोष नाम की वीणा बजाते हैं जो मुनिवरों के चित्तों को भी चलायमान कर देती है जो रामपुरी में पूतन यक्ष द्वारा संतुष्ट होकर उन्हें दी गयी थी। लक्ष्मण लक्षणों से युक्त गीत गाते हैं । सातों ही स्वर तीन ग्राम तथा स्वभेदयुक्त। इक्कीस वरमूर्च्छनाओं के स्थान तथा उनचास स्वर तानें । ताल-विताल पर सीता नाचती हैं । वह नव रस और आठ भावों, दस दृष्टियों तथा बाईस लयों को जानती हैं कि जो भरत मुनि के द्वारा भरत नाट्यशास्त्र में गवेषित हैं। सीता अपनी चौंसठ भुजाओं का प्रदर्शन करती हुई भावपूर्वक नृत्य करती हैं।
..2.32.8 1. चौबीसवीं संधि में लोरी गीत का प्रचलन दिखाया गया है तथा इसका रूप बताते हुये कहा ___ गया है कि - 'हो हो' लोरी गीत गाये जा रहे थे।
2.24.13 अयोध्याकाण्ड 2. छब्बीसवीं संधि, मंचों पर आलापिनी बज रही है तथा हिंदोल राग गाया जा रहा है ।105