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अपभ्रंश भारती - 9-10 (14) हनुमान को अपनी सेना के साथ रावण ने इस प्रकार देखा मानो पूर्णिमा के दिन चंद्रमा
ने आलोकित किरणों से भास्वर तरुण-तरणि को देखा हो। अयोध्याकाण्ड (1) दशरथ द्वारा राम को युवराज पद देने की घोषणा सुनकर कैकेयी उसी प्रकार संतप्त हो
उठती है जिसप्रकार ग्रीष्मकाल में धरती । (2) वनवास जाते समय सीता अपने भवन की शोभा का अपहरण करते हुए निकली जो
मानो राम के लिए दुःख की उत्पत्ति और रावण के लिए वज्र थी। उगता हुआ सूर्य-बिम्ब इस प्रकार शोभा देता है कि जैसे प्रभा से युक्त सुकवि का काव्य हो। नर श्रेष्ठों ने सीता और लक्ष्मण सहित राम को इस प्रकार प्रणाम किया मानो बत्तीसों इंद्रों के द्वारा जिनवर को प्रणाम किया गया हो।" स्वामी राम के मार्ग से राजा भरत उसी प्रकार चला जैसे जीव के पीछे कर्म लगा
हो। (6) लक्ष्मण तथा राम से विभूषित सीतादेवी वहाँ प्रवेश करती हुई दोनों पक्षों से समान
पूर्णिमा की भाँति दिखाई दी। (7) लक्ष्मण तथा राम के धवलोज्ज्वल व श्याम शरीर एकाकार हो गये, मानो गंगा तथा
यमुना के जल हों। (8) दोनों वीर एक ही आसन पर बैठ गये - उसी प्रकार जैसे सूर्य तथा चंद्र आकाश के
आँगन में सरोवररूपी आकाशतल में राम तथा लक्ष्मण दोनों ने अपनी पत्नियों के साथ इस प्रकार
रमण किया मानो रोहिणी तथा रण्णा के साथ चंद्र और दिवाकर हों। (10) रुद्रभूति राम-लक्ष्मण तथा कूबर नरेश के साथ जानकी ऐसी प्रतीत हो रहीं थी जैसे
चार समुद्रों से धरती घिरी हुई हो। (11) उन्होंने जानकीरूपी गंगा से युक्त राजा का आस्थानरूपी आकाश देखा, नररूपी नक्षत्रों
से घिरा हुआ तथा राम और लक्ष्मणरूपी सूर्य-चंद्रमा से मण्डित 4 (12) लक्ष्मण पत्नीसहित राम के चरणों में इस प्रकार गिर पड़ते हैं जैसे दीपशिखा के साथ
तम हो, जैसे दामिनी से गृहीत व्योम हो। सुंदरकाण्ड (1) अंनगकुसुम तथा पंकजरागा के मध्य सुंदर अंगोंवाले, कुवलयदल की भांति
दीर्घनयनवाले हनुमान इस प्रकार शोभित हो रहे थे मानो दोनों संध्याओं के मध्य में परिमित दिन हो।