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अपभ्रंश भारती - 9-10
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'पउमचरिउ' में प्रयुक्त प्रमुख उपमाएँ इस प्रकार हैं - विद्याधरकाण्ड (1) सिंहासन पर विराजमान आदरणीय वीर जिन ऐसे दिखाई दिये जैसे त्रिभुवन के मस्तक
पर स्थित शिवपुर में मोक्ष ही परिस्थित हो। (2) भौंहों से भयंकर ऊपर की विशाल दृष्टि से नीचे की दृष्टि पराजित हो गयी मानो
नवयौवनवाली चंचल चित्त कुलवधू सास के द्वारा डाँट दी गयी हो।" (3) एक दिन समस्त धरती का पालन करनेवाले सगर को उनका चंचल घोड़ा उसी प्रकार
अपहरण करके ले गया जिस प्रकार जीव को कर्म ले जाता है। (4) तोयदवाहन ने लंकापुरी में प्रवेश किया तथा अविचल रूप से राज्य में इस प्रकार
प्रतिष्ठित हो गया जैसे राक्षसवंश का पहला अंकुर फूटा हो। (5) अरे पुत्रों, तुम प्रतिरक्षा नहीं करते, मैंने तुम्हें पाल-पोसकर बड़ा किया, मेरा वह समस्त
क्लेश व्यर्थ चला गया उसी प्रकार जैसे पापियों के मध्य धर्म का व्याख्यान ।34 (6) रावण के गुण-गणों में अनुरक्त, आयी हुई इन विद्याओं से घिरा हुआ रावण उसी प्रकार
शोभित था जैसै ताराओं से घिरा चंद्रमा। (7) नायिका का खिला हुआ मुखकमल ऐसा दिखाई देता है जैसे निःश्वासों के आमोद में
अनुरक्त भ्रमर उसके पास हों। अनुभूत सुंगध उसकी नासिका ऐसी प्रतीत होती है मानों नेत्रों के जल के लिए सेतुबंध बना दिया गया हो। सिर के केशों से आच्छन्न ललाट
ऐसा प्रतीत होता है मानो जैसे चंद्रबिंब नवजलधर में निमग्न हो (8) रावण ने यम द्वारा फेंके गये तीरों का उसी प्रकार निवारण कर दिया जैसे दामाद दुष्ट
ससुराल का करता है।" (9) सहस्र किरण ने दूर से शत्रुबल को इस प्रकार रोक लिया जिस प्रकार जम्बूद्वीप समुद्रजल
. को रोके हुए है। (10) कट चुका है सिर जिसका तथा जिसके शरीर से रक्त की धारायें उछल रही हैं तथा
प्रतिइच्छा रखनेवाला भट ऐसा दारुण दिखाई देता है जैसे फागुन में सिंदूर से लाल सूर्य
हो। (11) मनुष्यों के धड़, हाथ तथा पैरों से समरभूमि इस प्रकार भंयकर हो उठी मानो रसोइये
ने अनेक प्रकार से यम के लिए रसोई बनाई हो। (12) अंजना तथा विद्याधर प्रतिसूर्य (अंजना का मामा) ने हर्षपूर्वक एक-दूसरे का आलिंगन
किया, इस अवसर पर अश्रुधारा इस प्रकार प्रवाहित होती है मानों करुण महारस ही
पीड़ित हो उठा हो । (13) प्रतिसूर्य से हनुमान कहते हैं मेरे जीवित होते तुम विरुद्धों से युद्ध क्यों लड़ोगे, क्या
सूर्य-चंद्रमा किरणसमूह के होते हुए धरती पर आते हैं ?42