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अपभ्रंश भारती - 9-10
प्राकृत-साहित्य का विद्यापति पर प्रभाव न केवल शृंगार-वर्णन प्रसंग में देखा जाता है, बल्कि विद्यापति की अवहट्ठ भाषा में रचित वीररसपरक रचनाओं 'कीर्तिलता' और 'कीर्त्तिपताका' पर भी प्राकृत का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है ।
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इसप्रकार हिन्दी-काव्य न केवल औपम्य-विधान की दृष्टि से, वरन् वस्तु/भाव-वर्णनचित्रण के लिहाज से भी प्राकृत काव्य का आभारी है।
1. 'कपूरमन्जरी', राजशेखर; उद्धृत प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, डॉ. नेमिचन्द्र जैन; तारा पब्लिकेशन्स, वाराणसी, 1966 ई.; पृ. 4171
2. विद्यापति पदावली, संपा. - डॉ. नरेन्द्र झा; अनुपम प्रकाशन, पटना; 1986 ई., पृ. 8।
3. 1187 विक्रम संवत्, अर्थात 1130 ई.
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4. नम्मयासुन्दरी कहा, महेन्द्रसूरि; उद्धृत प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, पृ. 417
5. विद्यापति पदावली, सं. - डॉ. नरेन्द्र झा; पृष्ठ 167 ।
व्याख्याता हिन्दी विभाग साहिबगंज कालेज साहिबगंज (दुमका वि.वि.)
बिहार