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________________ 96 अपभ्रंश भारती - 9-10 जत्थ य चूयकुसुममंजरिया जत्थ य चूयकुसुममंजरिया सुयचचू चुंबणजज्जरिया। हा सा महुरत्तेण व खद्धा कहिमि विडेण व वेसा लुद्धा। छप्पयछित्ता कोमलललिया वियसइ. मालइ मउलियकलिया। दंसणफंसणहिं रसयारी मयउ क्को ण वहूमणहारी। वायंदोलणलीलासारो तरुसाहाए हल्लइ मोरो। सोहइ घोलिरपिंछसहासो णं वणलच्छीचमरविलासो। जत्थ सरे पोसियकारंडं सरसं णवभिसकिसलयखंडं। दिण्णं हंसेणं हंसीए चंचू चंचू चुंबतीए। फुल्लामोयवसेणं भग्गो केयइकामिणियाए लग्गो। खरकंटयणहणिब्भिण्णंगो ण चलइ जत्थ खणं पि भयंगो। जत्थासण्णवणम्मि णिसण्णो णारीवीणारवहियकण्णो। ण चरइ हरिणो दवाखंडं ण गणइ पारद्धियकरकंडं। जत्थ गंधविसएणं खविओ जक्खीतणुपरि मलवे हविओ। हत्थी परिअंचइ णग्गोहं फंसइ हत्थेणं पारोहं। संकेयत्थो जत्थं सुहदं सोऊणं मंजीरयसहं। अहमेंतीए तीए सामी एवं भणिउं णच्चड़ कामी। घत्ता - तं वणु जोयंतिं मयणकयंतिं भणिउ पत्तफलु भिज्जइ। समदमजमवंतहँ संतहँ दंतहँ एत्थु णिवासु ण जुज्जड़॥ जसहरचरिउ 1.13 नन्दनवन का वर्णन उस नन्दनवन में आमों की पुष्पमंजरी शुकों की चोंच के चुम्बन से जर्जरित हो रही थी। हाय, वह पुष्प-मंजरी अपनी मधुरता के कारण खायी जा रही थी. जिस प्रकार लोभी वेश्या कामी पुरुष के द्वारा नष्ट की जाती है । कोमल और ललित मालती अपनी मुकुलित कलियों सहित फूल रही थी और उस पर भौंरे बैठ रहे थे। भला, दर्शन और स्पर्शन में रसीला और मृदुल कौन ऐसा होगा, जो बहुतों का मन आकर्षित न करे? वायु में झूलने की क्रीड़ा को श्रेष्ठ समझनेवाला मयूर एक वृक्ष की शाखा पर झूल रहा है। वह अपने चलायमान पंखों से हास्ययुक्त ऐसा शोभायमान होता था जैसे मानों वनलक्ष्मी का चमर-विलास हो। वहाँ सरोवर में कारण्ड व हंसों का पोषण करनेवाले सरस नये कमल नाल व अंकुरों के खण्डों को हंस अपनी हंसी को दे रहा था और वह अपनी चोंच से हंस की चोंच को चूम रही थी। केतकीरूपी कामिनी का आलिंगन करता हुआ और उसके फूलों की सुगन्ध के वशीभूत हुआ भुजंग तीक्ष्ण कण्टकरूपी नखों से छिन्नांग होकर भी वहाँ क्षणमात्र के लिए भी चलायमान नहीं होता था। वहाँ समीपवर्ती व्रज (चरागाह) में बैठा हआ तथा ग्वाल-स्त्री के वीणा की ध्वनि से आकर्षित कर्ण होकर हरिण न तो दूब की घास चरता था और न पारधी के हाथ के बाण की परवाह करता था। वहाँ अपने गन्ध के विषय के वशीभूत हुआ यक्षिणी के शरीर की सुगन्ध से विह्वल होकर हाथी न्यग्रोध (वट) वृक्ष के समीप जाता और अपनी सूंड से उसकी (वट की) जटाओं का स्पर्श करता था। वहाँ नूपुरों की मधुर ध्वनि को सुनकर अपने संकेत-स्थान पर खड़ा हुआ कामी पुरुष यह कहता हुआ नाच रहा था कि मैं ही उस आनेवाली प्रेयसी का प्रेमी हूँ। उस उपवन को देखकर मदन को जीतनेवाले मुनिराज ने कहा कि यहाँ पत्र और फल तोड़े जा रहे हैं (श्लेष-मुनिरूपी पात्र का संयमरूपी फल भग्न हो रहा है।) अतएव यहाँ शम, दम और यम की साधना करनेवाले सन्त पुरुषों का निवास उचित नहीं है 12॥ अनु. - डॉ. हीरालाल जैन
SR No.521857
Book TitleApbhramsa Bharti 1997 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size10 MB
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