________________
अपभ्रंश भारती
-
8
77
से छुटकारा पाने के लिए, मनोरंजन के हेतु, उत्सुकता - जिझासा के कारण, घर में बड़े बुजुर्गों की कुटेव देखकर, पिता/ पालक की अपनी संतान के प्रति लापरवाही से, कुसंगति में फँसने के कारण, कभी किसी के दबाव में आकर, पाश्चात्य सभ्यता, टीवी आदि के प्रभाव के कारण भी व्यसनी बन जाता है। वर्तमान में स्वयं को आधुनिक, विकसित कहलाने के लिए भी व्यक्ति व्यसन का सेवन करने लगता है और जीवन को सुख-शांतिपूर्ण बनानेवाले नैतिक मानवीय सदाचार को रूढ़िवाद समझ कर उनसे मुख मोड़ लेता है ।
व्यसन कोई भी हो, व्यक्ति शान से आरम्भ करता है और अन्त में उसका नाश हो जाता है। इसलिए सबके कल्याण की भावना से ओत-प्रोत संतों, ऋषि महर्षियों, नीतिकारों, उपदेशकों ने व्यसन से विरत होने की प्रेरणा दी है। ये व्यसन मानव के लिए किस प्रकार हानिकारक हैं, जानने का प्रयास करें ।
व्यसन शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक दृष्टि से हानिकारक हैं। 'शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्' तथा 'पहला सुख निरोगी काया' उक्ति के अनुसार सुखी जीवन के लिए शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है। प्रकृति के अनुकूल आहार-विहार एवं संयमितनियमित जीवनचर्या ही शरीर को रोगमुक्त रखने का सच्चा उपाय है। व्यसन अमर्यादित - उच्छृंखल आहार-विहार की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देकर शरीर को रोगी बना देता है। जुआ, सट्टा, चोरी आदि व्यसन प्रत्यक्षरूप से शारीरिक रोगों के नहीं वरन् मानसिक रोगों के कारण हैं । ये चिन्ता, भय, तनाव, मनस्ताप को जन्म देते हैं, फलस्वरूप स्नायुतंत्र, रक्त परिवहन संस्थान और पाचनतंत्र प्रभावित होता है जिससे कब्ज, अल्सर, बवासीर, उच्च रक्तचाप, हृदयाघात जैसे अनेक रोग पैदा हो जाते हैं । मादक पदार्थों के सेवन एवं मांस भक्षण से सर्वप्रथम पाचनतंत्र पर असर पड़ता है । मादक पदार्थों में विद्यमान अल्कोहल छोटी आँत, बड़ी आँत के लिए तो घातक है ही, मस्तिष्क की चेतना - शक्ति को भी प्रभावित करता है जो मस्तिष्क के रोगों का, कैंसर का एवं वंश - विकृति का भी कारण है। यह व्यक्ति को रोगी, परिवार को कष्ट भोगी बनाता है, यह राष्ट्र की जर्जर स्थिति का कारण है । अण्डे और मांस को पौष्टिक आहार बतलाकर उसके सेवन के लिए अवैज्ञानिक विज्ञापन किया जा रहा है। जब इसका जैव रासायनिक विश्लेषण किया जाता है तो ज्ञात होता है कि मांस में प्रोटीन की तुलना में कार्बोहाइड्रेट न के बराबर है जिससे डी.एन.ए. और आर. एन. ए. असन्तुलित हो जाते हैं और कोलेस्ट्रोल की मात्रा अधिक बढ़ जाती है । अण्डे में भी कोलेस्ट्रोल की मात्रा अधिक होती है। मांस और अण्डे दोनों में ही प्रोटीन की मात्रा कम होती है । अत: इन दोनों का भक्षण मिर्गी, उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, गुर्दे व पित्त की थैली में पथरी, आँत के कैंसर जैसे रोगों का जनक है । अण्डे में उपस्थित 30 प्रतिशत डी.डी.टी. लकवा रोग का कारण है । अण्डे की सफेदी का 'एवीडीन' नामक ज़हर एक्जीमा, लकवा और सूजन पैदा करता है। मुर्गियों एवं पशुओं में हो रही बीमारियाँ उनके अण्डे और मांस के माध्यम से उनके भक्षण करनेवालों तक पहुँच जाती हैं। इनमें टी.बी. प्रमुख है। इस प्रकार मादक पदार्थों का सेवन एवं मांस भक्षण शारीरिक दृष्टि से हानिकारक है । वेश्यावृत्ति एवं परस्त्री सेवन / अवैध सम्बन्ध जैसे व्यसन/दुष्कृत्य सूजाक, अपदंश, एड्स आदि घातक लैंगिक संक्रामक रोगों का