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________________ अपभ्रंश भारती - 8 नवम्बर, 1996 75 करकंडचरिउ में निदर्शित व्यसन-मुक्ति-स्वर की वर्तमान सन्दर्भ में उपयोगिता - डॉ. (कु.) आराधना जैन 'स्वतंत्र' भारतीय सामाजिक, धार्मिक आचार-संहिता में जहाँ महापाप-रूप दुराचार से परहेज किया गया है वहीं पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक संस्कृति/परम्परा में सदाचार की आवश्यकता और महत्व सहज स्वीकार किया गया है। इसीलिए भारतीय संतों, नीतिकारों, साहित्यकारों ने अपने उपदेशों द्वारा, साहित्य-सृजन द्वारा सदाचारमय जीवन जीने की प्रेरणा दी है जिससे मानव सभ्य सामाजिक जीवन की स्थापना के साथ खतरनाक बाधाओं से भी मुक्त रहे। उसे दुराचार/अनैतिक दुष्कृत्यों के दुष्प्रभावों को हृदयंगम कराते हुए उनसे बचने की प्रेरणा/सुझाव भी दिये हैं। इसका मूल कारण है कि वे जनजीवन के चारित्रिक एवं नैतिक स्तर को उन्नत करने के आकांक्षी थे। भारतीय संत परम्परा में जैनाचार्यों/नीतिकारों/विद्वानों/लेखकों ने सदाचार की प्ररूपणा करनेवाले श्रमणाचार/श्रावकाचार ग्रन्थों का प्रणयन किया है, ग्रन्थों की टीकाएं की हैं, सुभाषितों के माध्यम से उसे स्पष्ट किया है तथा कथाओं के माध्यम से भी सदाचार के महत्त्व का प्रतिपादन कर दिया है। ऐसे ही एक कवि हैं मुनि कनकामर, जिन्होंने अपभ्रंश में करकंडचरिउ' काव्य की रचनाकर पाठकों को साहित्य का रसास्वादन तो कराया ही है साथ ही उसे नीति, सदाचार एवं धार्मिक तत्त्वों से पुष्टकर अमानवीय, असामाजिक, अनैतिक, हिंसक आचरण को छोड़कर मानवीय सत्य आचरण अपना कर सुखी एवं स्वस्थ जीवन-निर्माण हेतु निदर्शन दिया है। द्वादश अनुप्रेक्षाओं का मन में स्मरण करते हुए जब करकण्ड नन्दन वन में पहुँचते हैं तब वहाँ उन्हें शीलगुप्त मुनिराज के दर्शन होते हैं। वे मुनिवर का गुणस्तवन तथा चरण-वन्दनाकर उनके आगे बैठकर निवेदन करते हैं -
SR No.521856
Book TitleApbhramsa Bharti 1996 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages94
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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