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________________ अपभ्रंश भारती - 8 35 वर्णन किया है। इसके अतिरिक्त पउमचरिउ में स्वयंभू-वर्णित जलक्रीड़ा-वर्णन", णायकुमारचरिउ में पुष्पदन्त-लिखित जलक्रीड़ा-वर्णन, जसहरचरिउ में क्रीड़ोद्यान-वर्णन और वीर कविरचित जंबुसामिचरिउ में उद्यान-वर्णन, पासचरिउ में जलक्रीड़ा आदि का वर्णन बड़ी स्वाभाविकता के साथ किया गया है। इसी प्रकार विद्यापति ने कीर्तिलता में जौनपुर का सार्वभौम वर्णन करते हुए लिखा है - उस नगर के सौन्दर्य को देखते हुए, सैकड़ों बाजार-रास्तों से गुजरते, उपनगर तिराहों और चौराहों में घूमते गोपुर (द्वार), वक्रहटी (सराफाहाट), मंडपों, गलियों, अट्टालिकाओं, एकान्त गृहों, रहट, घाट, कपिशीर्ष (किलों के ऊपर के गुंबज), प्राकार, पुर-विन्यास आदि का क्या वर्णन करूँ, मानो दूसरी अमरावती का अवतार हुआ है - अवरु पुनु ताहि नगरन्हि करो परिठव ठवन्ते शतसंख्य । हाट बाट गमन्ते शाखानगर शृंगाटक आक्रीडन्ते, गोपुर ॥ वकहटी, वलभी, वीथी, अटारी, ओवरी रहट घाट । कौसीस प्राकार पुरविन्यास कथा कहजो का जनि ॥ दोसरी अमरावती क अवतार भा ॥4 बाज़ार की गतिविधियों का वर्णन करता हुआ कवि आगे कहता है कि हाट में प्रथम प्रवेश करने पर, अष्टधातु से (बर्तन) गढ़ने की टंकार तथा बर्तन बेचनेवाले कसेरों की दुकानों पर बर्तनों की केंकार ध्वनि हो रही थी। खरीद-फरोख्त के लिए एकत्र लोगों के आने-जाने से क्षुब्ध धनहटा, सोनहटा, पनहटा (पान-दरीबा), पक्वानहाट, मछहटा के आनंद-कलरव की यदि कथा कहूँ तो झूठ होगा, लगता है जैसे मर्यादा छोड़कर समुद्र उठ पड़ा है और उसका गंभीर गुरग्गुरावर्त्त कल्लोल कोलाहल कानों में भर रहा है - अवि अवि अ, हाट करेओ प्रथम प्रवेश अष्टधातु । घटना टंकार, कसेरी पसरा कांस्य कें कार ॥ प्रचुर पौरजन पद संभार संभिन्न, धनहटा, सोनहटा। पनहटा, पक्वानहटा, मछहटा करेओ सुख रव कथा ॥ कहन्ते होइअ झूठ, जनि गंभीर गुर्गुरावर्त कल्लोल कोलाहल। कान भरन्ते मर्यादा छाँड़ि महार्णव ऊँठ ॥ विद्यापति ने जौनपुर के विभिन्न बाजारों का वर्णन किया है। उनमें निरन्तर उठनेवाली खास प्रकार की आवाज़ों को विशेषरूप से चित्रित किया है। बाज़ार में और नगर में होनेवाली भीड़ का वर्णन करते हुए यह बताया है कि इस भीड़ में एक साथ ब्राह्मण-चाण्डाल, वेश्या-यती आदि का स्पर्श होता है। उनके मन में होनेवाली प्रतिक्रियाओं का भी कवि ने बड़ा सरस वर्णन किया है - मध्यान्हे करी बेला संमद्द साज, सकल पृथ्वीचक्र । करेओ वस्तु विकाइबा काज। मानुस क मीसि पीस ॥ बर आँगे आँग, ऊंगर आनक तिलक आनका लाग । यात्राहुतह परस्त्रीक वलया भाँग। ब्राह्मण क यज्ञोपवीत ॥
SR No.521856
Book TitleApbhramsa Bharti 1996 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages94
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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