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अपभ्रंश भारती - 8
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प्रयोग अदृश्य हो गया। वैज्ञानिक सभ्यता की चकाचौंध ने लोगों के दृष्टिकोण को अध्यात्मपरक से बदलकर भौतिकतावादी बना दिया इसीलिए पौराणिक इतिवृत्तों की आधुनिक संदर्भ में व्याख्या का जन्म हुआ। यह एक स्वतंत्र चिंतन का विषय है। ___ अपभ्रंश के पौराणिक काल में जहाँ महापुरुषों के चरित्रकाव्यों के माध्यम से श्रावकों में धार्मिक एवं आध्यात्मिक रुचि जागृत की जाती थी वहाँ आधुनिक हिन्दी साहित्य में इन्हीं पुरावृत्तों द्वारा युगीन समस्याओं को उठाकर आधुनिक युग-बोध दिया जाता है। वैज्ञानिक सभ्यता के थपेड़ों में धराशायी जीवन-मूल्यों के ह्रास को रोकने का प्रयास आज के काव्य-नाटकों में जारी है। उर्वशी, कनुप्रिया आत्मजयी, संशय की एक रात, महाप्रस्थान, अन्धायुग, एक कंठ विषपायी आदि काव्य नाटक तथा प्रियप्रवास, साकेत, कुरुक्षेत्र, एकलव्य आदि काव्य इस संदर्भ में विशेष उल्लेखनीय हैं। निश्चित ही दोनों दृष्टियों में कोई विशेष अंतर नहीं है। अंतर है केवल विस्तृत दृष्टि फलक का जो आज बहुआयामी होकर भी उस अंतिम केन्द्रीय सत्य पर अटल नहीं हो रहा है जिससे धर्म, अध्यात्म एवं संस्कृति को सुरक्षित रखा जा सकता है।
1. हिन्दी साहित्य का आदिकाल, डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी, पृ. 74। 2. काव्यमीमांसा, राजशेखर, 14वाँ अध्याय, पृ. 198। 3. हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन, पृ. 262-286 ।
रीडर एवं विभागाध्यक्ष
हिन्दी विभाग एस. एफ. एस. कॉलेज
सदर, नागपुर