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________________ अपभ्रंश भारती 7 61 वियसाविय रवियरहि तविहि अरवियतवणि, अमियमओ विहु जणइ दाह विसजम्मगुणि । दंसिउ दुसहु भुअंगि अंगि चंदणु तवइ, खिवइ हारु हारुब्भवु कुसुम सरिच्छयइ ॥ 137॥ जैसे-तैसे ग्रीष्म को तो विरहिणी बिता देती है किन्तु वर्षाकाल तो प्राणलेवा ही लगता है। वर्षाकाल में कवि अब्दुल रहमान का मन ग्रीष्म से अधिक/द्विगुणित रमा है। महाकवि कालिदास का यक्ष तो 'आसाढस्य प्रथम दिवसे' ही प्रिया-विरह में उत्क्षिप्त होने लगा था। ऐसे में एक मानवी की क्या स्थिति होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। विरह-विदग्धा प्रेयसी नायिका ने देखा कि आकाश में काले-काले बादल उमड़ने-घुमड़ने लगे हैं तो वह समझ गई कि वर्षाकाल आ गया है । बादलों की गड़गड़ाहट के साथ विद्युत कौंधने लगी, जिसकी चमक में जमीन पर पगडण्डी दिखाई देने लगती है, आकाश में उड़ती हुई बकपंक्ति सुशोभित होती है तथा पपीहे तृप्ति व्यक्त करते हुए सरस शब्द करने लगते हैं। पोखरों का पानी उफनकर रास्तों में बहने लगा है, जिससे पथिकों ने अपने जूते हाथों में ले लिये हैं, नदियां कल-कल नाद कर प्रवाहित होने लगी हैं और आवागमन सहसा रुक गया है। ग्रामीण परिवेश में वर्षा का इतना जीवन्त चित्रण राजस्थानी के लोक महाकाव्य 'ढोला मारुरा दूहा' के समान ही पाठक के मन को मोह लेता है। कवि की कल्पना का चित्र निम्न पंक्तियों में द्रष्टव्य है, जब उसे पृथ्वीरूपी नायिका को अपने प्रियतम मेघ की प्रतीक्षा करनी पड़ती है - कद्दमलुल धवलंग विहाविह सज्झरिहि तडिनएवि पय भरिण अलक्ख सलज्जरिहि । हुउ तारायणु अलखु वियंमिउ तम पसरु, . छनउ इन्दोएहि निरंतर धर सिहर ॥ 143॥ वर्षा के आगमन पर प्रकृति-नटि आनन्द-विभोर हो नृत्य करने लगती है। बगुले वृक्षों पर, मोर शिखरों पर, मेंढक जलाशयों में और कोयल आम्रशिखर पर चढ़कर अपनी-अपनी वाणी में आनन्द की अभिव्यक्ति कर रहे हैं। किन्तु ये प्राकृतिक उपादान विरहिणी के हृदय में प्रियविरह की ज्वाला को सुलगा देते हैं। वर्षाकालीन संध्या का एक सहज सुन्दर चित्र देखिए - मच्छरभय संचडिउ रनि गोयंगणिहि, मणहर रमियइ नाहु रंगि गोयंगाणिहि । हरियाउलु धरवलउ कयंबिण महमहिउ, कियउ भंगु अंगंगि अणंगिण मह अहिउ ॥ 146 ॥
SR No.521855
Book TitleApbhramsa Bharti 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1995
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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