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________________ प्रकाशकीय अपभ्रंश भाषा और साहित्य के अध्येताओं के समक्ष अपभ्रंश भारती का सातवां अंक सहर्ष प्रस्तुत है। यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही दृष्टियों से हिन्दी साहित्य अपभ्रंश साहित्य से प्रभावित है। अधिकांश आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का जन्म भी अपभ्रंश से ही हुआ है। भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक अपभ्रंश में काव्य-निर्माण होता रहा। छठी शताब्दी से लेकर पन्द्रहवीं शताब्दी तक अपभ्रंश और उत्तरवर्ती अपभ्रंश साहित्य-पटल पर एकछत्र राज्य करती रही। इन्हीं कारणों से अपभ्रंश के अध्ययन-अध्यापन की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। - अपभ्रंश साहित्य के सांस्कृतिक महत्व को समझते हुए ही दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा अपभ्रंश साहित्य अकादमी की स्थापना की गई। अपभ्रंश भाषा के अध्ययनअध्यापन को दिशा प्रदान करने के लिए अपभ्रंश रचना सौरभ, प्राकृत रचना सौरभ, अपभ्रंश काव्य सौरभ, पाहुड दोहा चयनिका आदि पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं। पत्राचार के माध्यम से अखिल भारतीय स्तर पर अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम व अपभ्रंश डिप्लोमा पाठ्यक्रम विधिवत् चलाये जा रहे हैं। अपभ्रंश में मौलिक लेखन के प्रोत्साहन के लिए 'स्वयंभू पुरस्कार' भी प्रदान किया जाता है। प्रस्तुत अंक में विद्वानों द्वारा अपभ्रंश साहित्य पर विभिन्न दृष्टियों से विचार प्रस्तुत किये गये हैं। जिन विद्वानों ने अपनी रचनाएं भेजकर इस अंक का कलेवर बनाया हम उनके आभारी हैं। पत्रिका के सम्पादक, सहयोगी सम्पादक एवं सम्पादक मण्डल धन्यवादाह हैं। इस अंक के मुद्रण के लिए जयपुर प्रिन्टर्स प्राइवेट लिमिटेड, जयपुर भी धन्यवादाह है। कपूरचन्द पाटनी मंत्री नरेशकुमार सेठी अध्यक्ष प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी
SR No.521855
Book TitleApbhramsa Bharti 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1995
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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