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________________ अपभ्रंश भारती 7 अक्टूबर 1995 41 'णायकुमारचरिउ' में महाकवि पुष्पदन्त की सौन्दर्य-चेतना - डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव अपभ्रंश के चरितकाव्यों में 'णायकुमारचरिउ' का श्रेण्य स्थान है। इस चरितकाव्य के प्रणेता महाकवि पुष्पदन्त (ईसा की दसवीं शती) अपभ्रंश के महाकाव्यों में धुरिकीर्तनीय हैं। इनकी प्रख्यात काव्यत्रयी (तिसट्ठि - महापुरिस- गुणालंकार, जसहरचरिउ और णायकुमारचरिउ ) में काव्यगुण - भूयिष्ठता की दृष्टि से णायकुमारचरिउ शिखरस्थ है । इस चरितकाव्य का नायक नागकुमार (णायकुमार) एक राजपुत्र है जो कामदेव का अवतार है । वह मगधनरेश जयन्धर की द्वितीय महिषी पृथ्वीदेवी का पुत्र था। वह अपने वैमात्र भ्राता श्रीधर (मगधराज जयन्धर की प्रथम महादेवी विशालनेत्रा का पुत्र) की विद्वेषनीतिवश अपने पिता द्वारा निर्वासित कर दिया गया। देश-देशान्तरों में भ्रमण करते हुए नागकुमार ने अपने रूप, शील, शौर्य, नैपुण्य, कला - चातुर्य आदि गुणों से अनेक राजाओं और राजपुरुषों को प्रभावित किया। अनेक वीर योद्धा उसकी सेवा में समर्पित हुए। नागकुमार के पिता ने उसकी कीर्ति-दीप्ति और गुण-वैभव से प्रभावित होकर उसे राजधानी लौट आने को आमन्त्रित किया । नागकुमार मगध- जनपद में अवस्थित पिता की राजधानी कनकपुर लौट आया। पिता ने उसका राज्याभिषेक कर दिया। लगातार आठ सौ वर्षों तक राज्यप्रशासन करने के बाद नागकुमार ने अपने जीवन के अन्तिम चरण में वैराग्यभावापन्न होकर मुनिवृत्ति स्वीकार कर ली और तपस्या द्वारा वह सर्वोच्च मोक्षपद का अधिकारी हुआ । 1
SR No.521855
Book TitleApbhramsa Bharti 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1995
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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