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________________ 18 अपभ्रंश भारती 71 31. प्रभाकर पाठक हिन्दी वीर काव्य के विकास में अपभ्रंश साहित्य का योगदान मिथिला, 1984 32. योगेन्द्रनाथ मिश्रा संदेश रासक का भाषावैज्ञानिक अध्यन वाराणसी, 1986 33. गोदावरी नागवानी संदेशरासक में प्रयुक्त शब्दों का व्युत्पत्तिपरक अध्ययन रविशंकर, 1990 अपभ्रंश साहित्य के इस पुनरवलोकन से उसकी ऐतिहासिक महत्ता और साहित्यिक श्रेष्ठता का हमें परिचय और प्रमाण मिलता है। अपनी जीवन्त परम्पराओं और समृद्धशाली सृजनात्मक साहित्य के कारण यह आज भी अध्येताओं और अनुसंधाताओं के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। महान् वैयाकरणों और महाकवियों ने लोक जीवन के इस भव्यतम दर्पण को अलंकृत करने में अपनी प्रतिभा का नैवेद्य सहर्ष अर्पित किया। यही कारण है कि अपभ्रंश भाषा और साहित्य के अध्ययन और अनुसंधान का सिलसिला आज भी जारी है। अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर की स्थापना का इस दृष्टि से विशेष महत्त्व है।। 1. स्वशक्ति परोपदेशनिमित्तज्ञानभेदात् प्रत्येक बुद्ध बोधित विकल्पाः।। - अपनी शक्तिरूप निमित्त से होनेवाले ज्ञान के भेद से प्रत्येक बुद्ध होते हैं। - सर्वार्थसिद्धि, आचार्य पूज्यपाद, 10.9.937; भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन । 1. हिन्दी साहित्य का इतिहास, रामचन्द्र शुक्ल, वि. सं. 2018। 2. हिन्दी साहित्य का आदिकाल, हजारी प्र. द्विवेदी, 1961 ई.। 3. हिन्दी साहित्य कोश, भाग - 1. ज्ञानमण्डल लि., सं. 2020। 4. हिन्दी साहित्य का इतिहास, नगेन्द्र, 1973 ई.। 5. हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, नामवर सिंह, 1971 ई.। 6. अपभ्रंश : भाषा और व्याकरण, शिवसहाय पाठक, 1976 ई.। 7. अपभ्रंश काव्य सौरभ, डॉ. कमलचन्द सोगाणी, 1992 । 8. आलोचना, वर्ष 2, अंक 4, जुलाई 1953। 9. शोध संदर्भ - 1, 2, 3, गिरिराज शरण अग्रवाल। बेलवागंज लहेरियासराय दरभंगा-846001 (बिहार)
SR No.521855
Book TitleApbhramsa Bharti 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1995
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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