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________________ 90 अपभ्रंश भारती7 - निर्मल आत्मा का ध्यान करो। दूसरी बहुत बात से क्या लाभ? ध्यान करते हुए व्यक्तियों के द्वारा परम पद एक क्षण में ही प्राप्त कर लिया जाता है। जो गृहस्थ के कार्यों में लगे हुए भी हेय और उपादेय समझते हैं तथा प्रतिदिन जितेन्द्रिय दिव्य आत्मा का ध्यान करते हैं वे शीघ्र ही परम शांति प्राप्त करते हैं। ___मोक्ष पुरुषार्थ से अनुप्राणित जोइन्दु की कृतियों का कथ्य आत्मोद्धारक है। इनमें आत्मा के विभिन्न रूपों की विवेचना है। बहिरात्मा को अन्तरात्मा/आत्मज्ञानी बनने का सन्देश दिया गया है। अन्तरात्मा ही साधना के योग्य होता है। वही साधना के द्वारा राग-द्वेष का परिहार कर समदृष्टि बन जाता है अर्थात् वह न तो राग में रीझता है और न ही द्वेष में खीजता है वरन् समभाव में सीझता है। यही अंतरात्मा अपने पुरुषार्थ/साधना से परमात्म-पद/अनन्त सुख को प्राप्त कर लेता है। 1. परमात्मप्रकाश, जोइन्दु, 1.17-20, परम श्रुत प्रभावक मंडल, श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास, 1973 । 2. योगसार, जोइन्दु, 26, 57, 105 । 3. परमात्मप्रकाश, 1.40, 50-55। 4. परमात्मप्रकाश व योगसार चयनिका, डॉ. कमलचन्द सोगाणी, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, नवम्बर 88, प्रस्तावना, पृष्ठ 111 5. परमात्मप्रकाश, 1.30। 6. वही, 1.311 7. वही, 1.67। 8. वही, 1.701 9. जैनविद्या, अंक-9, नवम्बर-88, जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी, पृष्ट - 511 10. परमात्मप्रकाश, 2.761 11. वही, 2.811 12. वही, 2.82-841 13. वही, 2.1131 14. वही, 1.1141 15. वही, 1.12; योगसार, 8। मील रोड गंजबासौदा-464221
SR No.521855
Book TitleApbhramsa Bharti 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1995
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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