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अपभ्रंश-भारती 5-6
हमें मलयालम भाषा की 'कलकाँची','मणिकांची', 'पर्यस्तकांची' तथा मिश्र काकली, ये सब काकली के भेद हैं, में मिलती है। _ 'रामचन्द्र विलास' महाकाव्य, अषकत्तु श्री पद्मनाभक्कुरूप की रामायण-प्रसंग पर आधारित है। जो मलयाली ईरा के 1092वें साल में पहली बार प्रकाशित हुआ। वहीं श्रीं पन्नलं केरल वर्मा का रूक्मांगद-चरित्र' महाकाव्य मलयालम ईरा के 1063 में पूरा हुआ तथा 1097 में प्रकाशित हुआ। इसमें रूक्मांगद और मोहिनी की प्रणयकथा वर्णित है। __ तुलनात्मक अध्ययन के द्वारा हमें बहुत से अछूते संदर्भ प्राप्त होते रहे हैं, होते रहेंगे। क्योंकि भ्रमणशील प्रवृत्ति के कारण जब एक प्रांत का व्यक्ति दूसरे प्रांत में जाता है, रहता है, तब अपने साथ मूल में, व्यवहार में, भाषा-संस्कार, वेशभूषा, पर्व, सभी कुछ ले जाता है। अपभ्रंश भाषा का स्वरूप मलयालम, कन्नड़, मराठी, संस्कृत सभी में निहित हो सकता है।
भाषा-दृष्टि से सर्वेक्षण की व्यापकता की आवश्यकता है। महाराष्ट्र के 'लातूर' क्षेत्र में भी बोली जाने वाली भाषा में ब्रजभाषा, बघेली, राजस्थानी, मराठी की मिश्रित भाषा प्रयुक्त होती दिखायी देती है तथा शिरडी गाँव में भी तत्सम, अनुप्रास, यमक शब्दों की प्रचुरता दिखायी देती है।
इस प्रकार से हम भाषा विकास में अपभ्रंश की प्रवृत्तियाँ खोज सकते हैं।
1. हिन्दी साहित्य की भूमिका, पृष्ठ 32, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी । 2. वही, पृ. 33 । 3. हिन्दी साहित्य, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, पृ. 35 । 4. हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ, पृ. 35-36, डॉ.जयकिशन प्रसाद, विनोद पुस्तक मन्दिर,
रांगेय राघव मार्ग, आगरा-2 । 5. भक्तमाल, कवि नाभादास, मराठी-बंगला में अनुवाद । 6. हिन्दी साहित्य की भूमिका, पृ. 30, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी । 7. हिन्दी काव्य धारा, पृ. 50, डॉ. नामवर सिंह । 8. हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ, पृ. 44, डॉ. जयकिशन प्रसाद । 9. हिन्दी और मलयालम के काव्यरूप, पृ. 175, डॉ. वी. आर. कृष्ण नायर,
वाणी प्रकाशन, दिल्ली-110007 । 10. वही, पृ. 179 ।
8/263, मालवीय नगर जयपुर-302 017 (राज.)