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अपभ्रंश-भारती 5-6
जीवित प्रतिपक्षी पर रक्त की क्षिप्रता और पूर्व जोश आदि के कारण कुछ समय तक प्रहार करते रहते हैं।
निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि चंदबरदाई को कबन्ध-युद्ध-वर्णन की परम्परा अपभ्रंश से प्राप्त हुई है। इस संबंध में हेमचन्द्र के प्राकृत-व्याकरण में उद्धृत अपभ्रंश का एक दोहा द्रष्टव्य है
पाइ विलग्गी अन्त्रडी सिरु ल्हसिउं खन्धस्सु ।
तो वि कटारइ हत्थडउ बलि किज्जउँ कन्तस्सु । अपने कांत के कबन्ध-युद्ध की भूरि-भूरि प्रशंसा करके वीरांगना कहती है कि पाँव में अंतड़ियाँ लगी हैं, सिर कन्धे से लटक गया है तो भी हाथ कटारी पर है। कांत की मैं बलि जाऊँ।
उक्त कथन में क्षत्राणी का वीर हृदयोद्गार समाया हुआ है। अन्ततोगत्वा हैम व्याकरण के नारी-हृदय-संबंधी उक्त दोहों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है। प्रथम भाग में वे दोहे समाविष्ट किये जा सकते हैं जो नारी-हृदय के मधुर पक्ष का उद्घाटन करते हैं। दूसरे भाग में नारी-हृदय के परुष एवं वीर पक्ष से संबंध रखनेवाले दोहे आते हैं। डॉ. नामवरसिंह के शब्दों में - "प्रणयी जीवन के इन दोहों में वह सादगी, सरलता और ताजगी है जो हिन्दी के समूचे रीति-काव्य में भी मुश्किल से मिलेगी। कला वहाँ जरूर है, चातुरी वहाँ खूब है। एक-एक शब्द में अधिक से अधिक चमत्कृत करने की शक्ति भी हो सकती है, मतलब यह कि वहाँ गागर में सागर भरने की करामात हो सकती है लेकिन गागर में जितना ही अमृत भरने की जो चेष्टा यहाँ है उस पर रीझनेवाले सुजान भी कम नहीं हैं। कठिन काम गागर में सागर भरना हो सकता है लेकिन गागर में अपना हृदय भर देना कहीं अधिक कठिन है। हैम व्याकरण के इन दोहों की गागर ऐसी ही है। आर्या और गाहा सतसई की तरह इस दोहावली के भी एक-एक दोहे पर दर्जनों प्रबंध-काव्य निछावर किये जा सकते हैं।"36 निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि हैम व्याकरण के श्रृंगार और शौर्य-संबंधी दोहों में नारी-हृदय की धड़कनें अपने पूर्ण लावण्य के साथ काव्य-रूप ग्रहण किये हुए हैं। सामाजिक क्लीबता के निवारण के लिए उक्त दोहों का पुनः पुनः पठन नितान्त आवश्यक है। उक्त दोहों में न केवल रसराज शृंगार का विश्वमोहक रूप प्रकट हुआ है, अपितु रसराजराज वीर का विश्वपोषक रूप प्रदर्शित हुआ है । वीरांगनाओं के उक्त मधुर एवं वीर हृदयोद्गारों ने न केवल अपने वीर पतियों में शत्रु-सेना के हाथियों का कुम्भस्थल विदीर्ण करने की क्षमता उत्पन्न की है, अपितु कायरता पर दिग्विजय प्राप्त करके क्लीबता के खण्डन के इतिहास में एक सुंदर अध्याय जोड़ दिया है।
1. प्राकृत व्याकरण, आचार्य हेमचन्द्र, सूत्र संख्या 332 में उद्धृत, पृ. 591 ।
[ Siddha-Hema-Sabdãnušāsana, Hemachandra, Eighth Adhyaya, Bhanderkar Oriental Research Institute, Poona, 1980, Revised by P.L.
Vaidya] 2. वही, सूत्र 333 में उद्धृत ।