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________________ प्रकाशकीय - अपभ्रंश भाषा और साहित्य के अध्येताओं के समक्ष अपभ्रंश भारती का पांचवां-छठा अंक सहर्ष प्रस्तुत है। आज तो हिन्दी के बहुत से आलोचक रीतिकाल और भक्तिकाल की रचनाओं का बीजसन्दर्भ आदिकाल की अपभ्रंश-रचनाओं में देखने लगे हैं। राष्ट्रभाषा हिन्दी व आधुनिक आर्य भाषाओं के विकास-क्रम के ज्ञान के लिए अपभ्रंश साहित्य की उपादेयता असंदिग्ध है। लोक-जीवन की ऐसी कोई विधा नहीं जिस पर अपभ्रंश भाषा में न लिखा गया हो। अपभ्रंश साहित्य के सांस्कृतिक महत्व को समझते हुए ही दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा अपभ्रंश साहित्य अकादमी की स्थापना की गई। अपभ्रंश भाषा के अध्ययन-अध्यापन को दिशा प्रदान करने के लिए अपभ्रंश रचना सौरभ, प्राकृत रचना सौरभ, अपभ्रंश काव्य सौरभ, पाहुडदोहा चयनिका आदि पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं। अखिल भारतीय स्तर पर पत्राचार अपभ्रंश सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम व पत्राचार अपभ्रंश डिप्लोमा पाठ्यक्रम अपभ्रंश साहित्य अकादमी द्वारा संचालित हैं। अपभ्रंश में मौलिक लेखन के प्रोत्साहन के लिए स्वयंभू पुरस्कार' भी प्रारम्भ किया गया है। 'अपभ्रंश भारती' पत्रिका का प्रकाशन अपभ्रंश भाषा और साहित्य के पुनरुत्थान व प्रचार के लिए उठाया गया एक कदम है। विद्वानों द्वारा अपभ्रंश साहित्य पर की जा रही शोध-खोज को 'अपभ्रंश भारती' के माध्यम से प्रकाशित करना हम अपना कर्तव्य समझते हैं। इस अंक में अपभ्रंश साहित्य के विविध पक्षों पर विद्वान लेखकों ने अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। हम उन सभी के प्रति आभारी हैं। पत्रिका के सम्पादक, सहयोगी सम्पादक एवं सम्पादक मण्डल धन्यवादाह हैं। इस अंक के मुद्रण के लिए जयपुर प्रिन्टर्स प्राईवेट लिमिटेड, जयपुर भी धन्यवादाह है। कपूरचन्द पाटनी मंत्री नरेशकुमार सेठी अध्यक्ष प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी
SR No.521854
Book TitleApbhramsa Bharti 1994 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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