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अपभ्रंश-भारती 5-6
जनवरी-जुलाई-1994
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अध्यात्मरसिक कबीर की पृष्ठभूमि में
मुनि रामसिंह
- डॉ (श्रीमती) पुष्पलता जैन
मुनि रामसिंह हिन्दी साहित्य के आदिकालीन अपभ्रंश के अध्यात्म-साधक कवि रहे हैं जिन्होंने दर्शन और अध्यात्म के क्षेत्र में एक नयी क्रान्ति का सूत्रपात किया। उनकी साधना आत्मानुभूति अथवा स्वसंवेद्यज्ञान पर आधारित थी इसलिए उनके ग्रंथ 'पाहुडदोहा' में अध्यात्म किंवा रहस्यवाद के तत्त्व सहज ही दृष्टिगत होते हैं।
स्व. डॉ. हीरालाल जैन ने मुनि रामसिंह का समय सं. 1100 ई. से पूर्व माना है।' पाहुडदोहा के कुछ दोहे हेर-फेर के साथ आचार्य हेमचन्द्र ने अपने ग्रंथ प्राकृत व्याकरण में उद्धृत किये हैं जो 1093 और 1143 ई. के बीच लिखा गया। अपभ्रंश के पूर्वकालीन कवि योगीन्दु (छठी शती) के 'परमात्मप्रकाश' का प्रभाव भी मुनि रामसिंह के पाहुडदोहा पर रहा होगा। यह तथ्य इससे भी सिद्ध होता है कि मुनि रामसिंह ने योगीन्दु द्वारा प्रस्तावित विषय को कुछ और आगे बढ़ाया। योगीन्दु जिस रहस्यभावना की चर्चा करते हैं मुनि रामसिंह के पाहुडदोहा में वही विषय कुछ अधिक विकसित-रूप में दिखाई देता है। इस दृष्टि से डॉ. हीरालालजी द्वारा निर्धारित 1100 ई. से पूर्ववाले समय को यदि हम लगभग 9वीं-10वीं शताब्दी पीछे तक ले जायें तो कोई असंगति नहीं होगी।