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अपभ्रंश-भारती 5-6
रघुनन्दन को राजपट्ट बाँधे जाने के बहुत दिनों बाद भरत का निधन हो जाता है। लक्ष्मण को तीन खण्ड धरती और शत्रुघ्न को मथुरा नगरी प्रदान की जाती है।
सीता-निर्वासन प्रसंग वाल्मीकि एवं आनन्द रामायण के समान यहाँ भी उपलब्ध है। परित्यक्ता सीता के शाप के भय से देवलोक वनजंघ (वाल्मीकि नहीं) की भेंट सीता देवी से करा देता है जो उन्हें अपनी बहन घोषितकर पुण्डरीक नगर ले जाता है। सीता के पुत्रों - लवण का कनकमाला और अंकुश का तरंगमाला से विवाह होता है। नारद द्वारा प्रेरित किये जाने पर सीता-पुत्र अयोध्या पर आक्रमण करते हैं। राम और लवण के मध्य हो रहे युद्ध में राम द्वारा संचालित अस्त्र लवण तक नहीं पहुँचते। फलतः लक्ष्मण लवण और अंकुश के वध हेतु अपना चक्र घुमाकर मारते हैं। आशा के विपरीत वह चक्र लवण-अंकुश की तीन प्रदक्षिणाएं देकर लक्ष्मण के पास वापस आ जाता है।
राम द्वारा भेजे गए पुष्पक विमान पर आरूढ़ होने के पूर्व सीता राम को उपालम्भ देती है - 'पत्थर हृदय राम का नाम मत लो। उनसे मुझे कभी सुख नहीं मिला, मैं यह जानती हूँ।26
अग्नि-परीक्षा-प्रसंग 'पउमचरिउ' में उत्तरकाण्ड में है। अन्त में, वह अग्नि नव कमलों से आवृत्त सरोवर में बदल जाती है। सीता अपने सिर के केश दायें हाथ से उखाड़कर रामचन्द्र के सम्मुख डाल देती है और सर्वभूषण मुनि के पास जाकर दीक्षा ले लेती है।
लक्ष्मण के आठ पुत्र राम के पुत्रों से क्षुब्ध हो महाबल महामुनि के पास जाकर दीक्षा ले लेते हैं 28 भामण्डल की मृत्यु मस्तक पर बिजली गिरने से होती है। राम-लक्ष्मण के दुर्लभप्रेम के कारण ईर्ष्यायुक्त हुए देवगण लक्ष्मण को जैसे ही- 'रामचन्द्र मर गए' कहते हैं कि लक्ष्मण 'अरे राम के क्या हो गया' कहते-कहते देह-त्याग देते हैं - खुली हुई आँखें ! एक दम अडोल शरीर ! लक्ष्मण की मृत्यु पर विषण्ण लवण-अंकुश भी जिन-धर्म में दीक्षित होते हैं। अनन्य प्रेम के कारण राम लक्ष्मण का दाह-संस्कार करने को तैयार नहीं होते अपितु उन्मत्त की भाँति सामन्तों से कहते हैं - 'अपने स्वजनों के साथ तुम जल जाओ, तुम्हारे माँ-बाप जलें, मेरा भाई तो चिरंजीवी है। लक्ष्मण को लेकर मैं वहाँ जाता हूँ जहाँ दुष्टों के ये वचन सुनने में न आवें। लक्ष्मण की मृत देह को चूमते, प्रलाप करते राम उन्हें कन्धों पर रख स्नानागार में ले जा स्नान कराते हैं, उन्हें मणि-रत्नों के आभूषणों से सुसज्जित कर उनके मुँह में कौर देते हैं और आधे वर्ष तक अपने कन्धों पर शव ढोते फिरते हैं। स्वयंभूदेव ने यथार्थ चरित्र-सृष्टि की है। अत्यन्त सामान्य मनुष्य की भाँति राम भी अपने प्रिय की मृत्यु सहज स्वीकार नहीं करते। __इसी अवधि में इन्द्रजीत और खर के पुत्र अयोध्या पर आक्रमण करते हैं। रथारूढ़ राम भाई को गोद में लेकर वज्रावर्त धनुष तानते हैं। अन्त में, बोध प्राप्त होने पर वे उनका सरयू-तट पर अन्तिम संस्कार करते हैं। लवण के पुत्र को राज्य-भार सौंपकर राम सुव्रत ऋषि के समीप जा दीक्षा-ग्रहण करते हैं। राम की माताएँ, शत्रुघ्न तथा सोलह हजार राजा, सत्ताईस हजार स्त्रियाँ भी दीक्षा लेती हैं।