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अपभ्रंश-भारती 5-6
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'रामचरितमानस' की भाँति 'पउमचरिउ' की राम-सेना विमान-विहीन नहीं। हनुमान पद्मप्रभ विमान पर सुशोभित होते हैं और विभीषण राम-लक्ष्मण के लिए विद्युतप्रभ और मेघप्रभ विमान प्रदानकर स्वयं के लिए रविप्रभ एवं शशिप्रभ विमान रखता है। युद्ध में रावण विभीषण पर शक्ति-प्रहार करता है जिसे लक्ष्मण अपने हृदय पर झेलते हैं और मूर्च्छित हो गिर पड़ते हैं। लक्ष्मण की मूर्छा के समाचार पर सीता भी मूर्च्छित होकर गिर पड़ती है।
'पउमचरिउ' में लक्ष्मण के जीवन-रक्षण में समर्थ विशल्या अयोध्या में उपलब्ध होती है। 'आनन्द रामायण' एवं 'साकेत' में भी हनुमान को विशल्यकरणी औषधि अयोध्या में ही मिलती है। द्रोण और विशल्या यहाँ पर्वत और औषधि नहीं, सजीव मानव देहधारी हैं। 'साकेत' में राम-रावण युद्ध की सूचना पा अयोध्यावासी उत्तेजित हो युद्ध के लिए प्रस्तुत होते हैं। मैथिलीशरण गुप्त ने सम्भवतः इस प्रसंग की प्रेरणा 'पउमचरिउ' से प्राप्त की होगी, यहाँ भरत के रणभेरी बजाते ही असंख्य सेना सजने लगती है।
विशल्या के स्नानजल से स्वस्थ हुए लक्ष्मण जाम्बवन्त के परामर्श पर उसका पाणिग्रहण करते हैं। इस सूचना से चिन्तित हुआ रावण बहुरूपिणी विद्या की सिद्धि के लिए शान्तिनाथ मन्दिर में जाकर ध्यान करता है। फाल्गुन में नन्दीश्वर व्रत के आगमन पर नगर में हिंसा रोक दी जाती है। राम-रावण के मध्य सात दिनों तक चले अनिर्णीत युद्ध के पश्चात् लक्ष्मण स्वयं युद्धरत होते हैं।
वासुदेव और प्रतिवासुदेव (रावण) के मध्य हो रहे युद्ध के बीच शशिवर्धन की कन्याएं आकाश से नीचे उतरती हैं। दस दिन तक युद्ध कर अवलोकिनी विद्या - "लंकेसर महु एत्तडिय सत्ति"[ लंकेश्वर ! मेरी इतनी ही शक्ति है। (75.20.2)] - कहकर लुप्त हो जाती है । लक्ष्मण की वधेच्छा से प्रेरित हुआ रावण उन पर चक्र-प्रहार करता है किन्तु वासुदेव का आयुध चक्र आकर उनके हाथ पर बैठ जाता है। वासुदेव लक्ष्मण उसी चक्र से रावण का वक्षस्थल खण्डित करते हैं। रावण-वध पर क्षुब्ध विभीषण छुरी से आत्महत्या हेतु उद्यत होते हैं और ससंज्ञ हो करुण विलाप करते हैं। विभीषण के साथ ही राम-लक्ष्मण एवं वानर-समूह भी रुदन करता है। लोकाचार के निर्वाह के लिए स्वयं राम दशानन के लिए जल देते हैं। मन्दोदरी सपरिवार सर्व परिग्रह त्यागकर पाणिपात्र आहार ग्रहण करती है। रावण-पुत्र इन्द्रजीत, मेघवाहन, मय, कुम्भकर्ण, मारीच आदि संन्यास लेते हैं ।74
अन्य राम-काव्यों के समान राम-लक्ष्मण विभीषण का अभिषेक कर शीघ्र ही अयोध्या नहीं लौटते, अपितु छः वर्ष तक लंका में रहते हैं। इस कालावधि में लक्ष्मण की समस्त पत्नियाँ - कल्याणमाला, वनमाला, जितपद्मा, सोमा आदि लंका पहुँच जाती हैं । नारद द्वारा माता अपराजिता की वेदना जान राम अयोध्या लौटते हैं। विभीषण अपने निर्माणकर्ता भेजकर स्वर्ण से अयोध्यानगरी का पुनर्निर्माण कराता है।
विरत भरत को तपोवन जाने से रोकने के लिए राम के आदेश पर जानकी आदि सुन्दरियाँ उनके साथ सरोवर में जल-क्रीड़ा करती हैं। कैकेयी भी केश लोंचकर दीक्षा ग्रहण करती है।