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________________ अपभ्रंश-भारती-3-4 73 ग्रामीण गाड़ीवान कोई ग्रामीण गृहपति था (जो) कहीं (गाँव में) रहता था। एक बार उसने धन से भरी हुई गाड़ी को लेकर और पिंजरे में रखे हुए तीतर को गाड़ी में बांधकर नगर को प्रस्थान किया। (वह) नगर में गया और गंधी-पुत्रों द्वारा देखा गया। वह उनके द्वारा पूछा गया - तुम्हारे पिंजरे में यह क्या है ? उसके द्वारा कहा गया - तीतर। तब उनके द्वारा कहा गया - क्या यह गाड़ी में (रखा हुआ) तीतर बेचा जाएगा (बेचा जाता है)? उसके द्वारा कहा गया - हाँ, बेचा जायगा। उनके द्वारा कहा गया - क्या प्राप्त किया जायगा ? गाड़ीवाले के द्वारा कहा गया - एक कार्षापण (सिक्के) से बेचा जायगा। तब उनके द्वारा एक कार्षापण दिया गया, (वे) गाड़ी और तीतर को ग्रहण करने के लिए प्रवृत्त हुए। तब उस गाड़ीवाले के द्वारा कहा गया - (तुम) यह गाड़ी क्यों ले जाते हो? उनके द्वारा कहा गया - मोल से ली गई (है)।तब उनका फैसला हुआ। वह गाड़ीवाला जीत लिया गया। तीतर के साथ वह गाड़ी ले जाई गई। जिसका गाडीरूपी साधन ले जाया गया वह गाड़ीवान योग-क्षेम के लिए लाये गये बैल को लेकर रोता हुआ गया। (वह) दूसरे कुलपुत्र के द्वारा देखा गया और पूछा गया - (तुम) क्यों रोते हो? उसके द्वारा कहा गया - हे स्वामी ! मैं इस प्रकार ठगा गया। तब उसके द्वारा दयासहित कहा गया - उनके ही घर को जा और इस प्रकार कह।
SR No.521853
Book TitleApbhramsa Bharti 1993 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1993
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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