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अपभ्रंश-भारती-3-4
4. 'मुनि रामसिंह' विरचित 'पाहुड दोहा', डा. हीरालाल जैन, वि. संवत् 1990, पृष्ठ
संख्या 13 । 5. डा. सिंह वासुदेव, वही, पृष्ठ संख्या 51-52 । 6. वही, पृष्ठ संख्या 48 से 51। 7. पाहुड दोहा, पद्य क्रमांक 211, रामसीहमुणि इम भणइ' । 8. दृष्टव्य - 'परमात्मप्रकाश' का पद्य क्रमांक - 8 और 'योगसार' का पद्य क्रमांक - 108। 9. मुनि रामसिंह, 'पाहुड दोहा', भूमिका, पृष्ठ सं. 11 । 10. 'पाहुड दोहा' की भूमिका, पृष्ठ सं. 26 । 11. डा. सिंह वासुदेव, अपभ्रंश और हिन्दी में जैन रहस्यवाद, प्रथम संस्करण, संवत् - 2022,
पृष्ठ सं. 53 । 12. डा. शर्मा, रामगोपाल 'दिनेश', अपभ्रंश भाषा का व्याकरण और साहित्य, प्रथम संस्करण,
सन् 1982 । 13. डा. जैन देवेन्द्रकुमार, अपभ्रंश भाषा और साहित्य, ग्रन्थांक - 152, प्रथम संस्करण -
1966 पृष्ठ सं. - 81 । 14. महाभाष्य (निर्णय सागर प्रेस, मुंबई), एकैकस्य हि शब्दस्य बहवोऽपभ्रंशाः । 15. भरतमुनि, नाट्यशास्त्र (चौखम्बा संस्कृत सीरीज), 17/49-50 । 16. पाहुड दोहा - अम्मिय इहु मणु हत्थिया विइंत्र जंतइ वारि।
तं गंणेसइ सीलवणु पुणु पडिराइ संसारि 155॥
तुलना मृच्छकटिकम् - शिल मुंडिदे, तुंड मुंडिदे
चित्त म मुंडिदे, कीश मुंडिदे॥
वाई-343, सरोजनी नगर नई दिल्ली-23