________________
अपभ्रंश-भारती-3-4
जनवरी-जुलाई-1993
17
आदिकालीन हिन्दी : भाषिक संवेदना का नव धरातल
___ और अब्दुल रहमान
- डॉ. राजमणि शर्मा
इलियट ने रचना की श्रेष्ठता के लिए भोक्ता और रचयिता के अलगाव की शर्त आवश्यक मानी है। किन्तु केदारनाथ सिंह ठीक इसके विपरीत बात करते हैं
मुझे कहीं भी देखा जा सकता है किसी भी दिशा से किसी मोड़ पर
किसी भी भाषा के अज्ञात शब्दकोश में, ११ तात्पर्य यह कि रचनाकार और रचना का तादात्म्य आवश्यक है। सत्य तो यह है कि यह तादात्म्य भारतीय रचना-प्रक्रिया की पहचान है। व्यास, वाल्मीकि सरहपा, कण्हपा, अब्दुल रहमान, चन्दवरदायी, कबीर, सूर, तुलसी, भारतेन्दु, पंत, प्रसाद, निराला, महादेव, प्रेमचंद, 'अज्ञेय, हजारीप्रसाद द्विवेदी, धर्मवीर भारती, जैनेन्द्र, नरेश मेहता, शमशेर, त्रिलोचन, नागार्जुन, रघुवीर सहाय, केदारनाथ अग्रवाल, मुक्तिबोध, धूमिल, जगूड़ी आदि रचयिता भी हैं और चरित्र भी। वस्तुतः रचयिता और चरित्र की एकरूपता ही हिन्दी साहित्य और उसकी भाषा की शक्ति है। यह शक्ति परम्परा के अनुपालन से नहीं अपितु उसके प्रति विद्रोह का भाव मुखर करने से उपजी है। यह विद्रोह कहीं एक जगह नहीं अपितु वह गहरे पैठी मानसिकता की देन है। और