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________________ 86 उदाहरणार्थ सुरणरविसहरवरखयरसरणु, कुसुमसर पहरहरसमवसरणु । पइसरइ णिवइ पहु सरइ थुणइ, बहुभवभव कयरयपडलु धुणइ ॥ 21 सिरि करिवि धरेव्वउ विसहरेण, केण वि दिव्वेण विहरहरेण । णियतेयणिहय सोदामिणीहि, कीलेसइ णायफणामणीहि ॥22 मायापियर दुक्कियहरई, मणिकलससमुहदप्पणकरई । उवणियघंटाचामरधयई, अण्णाहिँ दिणि जिणभवणहो गयइँ ॥ 23 जायकुमारहो सगे लग्गा, अज्झासा इच्छियसंसग्गा । किण्णरिदेविमणोहरियाओ, णियपुत्तीओ जिह धरियाओ ॥24 कहीं-कहीं प्रत्येक चरण में 15 मात्राएँ होती हैं परन्तु अन्तिम लघु दीर्घ माना जाता है जिसे द्विमात्रिक ही कह सकते हैं । उदाहरणार्थ उ कहिँ मि मरणदिणे उव्वरइ, चमराणिलु सासाणिलु धरई । सुह रायपट्टबंधे वसई, कि आउणिबंधणु णउ ल्हसइ ॥25 4. घत्ता घत्ता (31 मात्रिक) प्रत्येक कवक के अन्त में आनेवाले घत्ता सन्धि 4, 5 व 8 में एक से हैं । यह दो चरणो का घत्ता षटपदी कहलाता है । जैसे जो मइरा चक्खइ आमिसु भक्खर कुगुरु कुदेवहँ लग्गइ । सो माणउ णट्ठउ पहपब्भट्ठउ पावइ भीसण दुग्गइ 1126 - अपभ्रंश - भारती-2. घत्ता (30 मात्रिक) सन्धि 2, 9 का घत्ता जो प्रत्येक कडवंक के अन्त में आये हैं, एक समान हैं जिनका अन्त लघु से हुआ है । जैसे - उ डसियाहरऊ भूभंगुरऊ कुसुम सरेण परज्जिउ । दिउ जिणवणू थियसमणयणू कामकोहभयवज्जिउ ॥ 27 - घत्ता (28 मात्रिक) सन्धि 1 के सभी कडवक के अन्त में आनेवाला घत्ता समान होते हुए अन्त में लघु रखता है । जैसे सो विवि णरिंदो विण्णवइ ओसारियजणदुरियरिणु । विउलइरिणियबहो सुरणमिउ आयउ सम्मइ परमजिणु ॥20 घत्ता (24 मात्रिक) सन्धि 3 व 6 के कडवक के अन्त में घत्ता आये हैं । सन्धि 3 के कडवक 2, 5, 6 4 8 के घत्ते का अन्त गुरु से होता है शेष सभी का अन्त लघु से हुआ है । जैसे
SR No.521852
Book TitleApbhramsa Bharti 1992 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size11 MB
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