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अपभ्रंश - भारती-2
अपभ्रंश काव्य प्रायः कथात्मक है । वर्णन प्रधान है, जिसमें चरित्र वर्णन का बाहुल्य । संस्कृत एवं प्राकृतपूर्व साहित्य के छन्दों के इतर अपभ्रंश साहित्य ने नये छन्दों का आविष्कार किया है जिन्होंने परवर्ती काव्य को प्रभावित किया है । हिन्दी की चौपाई, दोहा, तुकबन्दी अपभ्रंश क ही देन हैं ।
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प्रस्तुत चरिउ काव्य 9 संधियों में विखण्डित है और संधियाँ कडवकों में विभाजित । प्रत्येव कवक में अनेक अर्धालियों एवं अन्त में एक घत्ता छन्द का समावेश है जिसका स्वरूप संधि बे प्रारम्भ में ध्रुवक का प्रयोग करके स्पष्ट कर दिया गया है । आलोच्य काव्य में कडवक के अन्तर्गत सर्वाधिक इकतालिस अर्धालियाँ और कम से कम छह ' अर्धालियाँ प्रयुक्त । कुल कडवकों की संख्या 150, घत्ता की संख्या 150, ध्रुवक की संख्या 9 एवं दुवई की संख्या 32 इस काव्य में सुलभ है । दुवई छन्द का प्रयोग केवल 3 व 4 सन्धियों में किया गया है । छन्दों के दीपक', विवरण में अलिल्लह', पज्झटिका', पादाकुलकर, सखणारी या सोमराजी', मदनावतार', चारुपद, प्रमाणिका, मौक्तिकदाम 11, भुजंगप्रयात 12, करिमकरभुजाद्विपदी 13, मधुभार 14 व मालती 15 प्राप्य हैं। सर्वाधिक अलिल्लह और पज्झटिका छन्दों का प्रयोग है ।
मात्रिक छंद
1. अडिल्ला (अलिल्लह)
इस छन्द का प्रत्येक चरण सोलह मात्राओं से युक्त होता है और दो चरणों में परस्पर तुकबन्दी होती है । चरण का अन्त दो लघु स्वरों से होता है । इस प्रकार के छन्द प्रस्तुत काव्य के संधि 3, 5, 7 व 9 में सुलभ हैं जिसमें 3716 कडवक सम्पूर्ण रूप से नियमबद्ध हैं अर्थात् प्रत्येक चरण में अलिल्लह छन्द का परिपालन हुआ है जबकि 22 कडवकों में प्रत्येक कडवक में 2 और 10 चरणों के बीच में पादाकुलक छन्द पर आधारित चरणों का समावेश है
सन्धि 3
चरण (पादाकुलक)
सन्धि 5 कडवक
कडवक
चरण (पादाकुलक)
3
2
1
7
6
8
7
8
9
11
12
13
12
17
1
2
3
4
11
12
15
सन्धि 7
2
2
2
2
6
4
4
2
2
4
10
4
6
सन्धि 9
1
11
12
4
6
2
2
8
4
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