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अपभ्रंश-भारती-2
जुलाई, 1992
पउमचरिउ स्वयम्भू का बिम्बविधान
• डॉ. श्रीरंजनसूरिदेव
'पउमचरिउ अपभ्रंश के महाकवि स्वयम्भू (ईसवी आठवी-नवीं शती) द्वारा अर्थगर्भकाव्य भाषा में रचित राम-महाकाव्य अथवा रामायण है । यह महाकाव्य इतिहास, कल्पना, मिथकीय चेतना एवं कथारूढ़ि से मिश्रित कथानक की व्यापकता और विशालता, साथ ही भावसघन एवं रसपेशल भाषिक वक्रता, चमत्कारपूर्ण वर्णन-शैली, मोहक बिम्ब और उदात्त सौन्दर्य से परिपूर्ण काव्यभाषा के मनोरम शिल्प से सज्जित असाधारण कृति है ।
कल्पना जब मूर्तरूप धारण करती है, तब बिम्बों की सृष्टि होती है और जब बिम्ब प्रतिमित या व्युत्पन्न या प्रयोग के पौनःपुन्य से किसी निश्चित अर्थ में निर्धारित हो जाता है, तब वह प्रतीक बन जाता है । इस प्रकार बिम्ब कल्पना और प्रतीक का मध्यवर्ती है । बिम्ब-विधान कलाकार की अमूर्त सहजानुभूति को इन्द्रियग्राह्यता प्रदान करता है । कल्पना से यदि सामान्य विचार-चित्रों की उपलब्धि होती है, तो बिम्ब से विशेष चित्रों की । “पउमचरिउ' में अनेक ऐसे कलात्मक चित्र हैं जो अपनी विशेषता से मनोरम बिम्बों की उद्भावना करते हैं ।
'पउमचरिउ' में वास्तविक और काल्पनिक दोनों प्रकार की अनुभूतियों से बिम्बों का निर्माण हुआ है, जैसे कुछ बिम्ब तो दृश्य के सादृश्य के आधार पर निर्मित हुए हैं और कुछ संवेदन की प्रतिकृति से । इसी प्रकार, कतिपय बिम्ब किसी मानसिक धारणा या विचारणा से निर्मित हुए है तो कुछ बिम्बों का निर्माण किसी विशेष अर्थ को द्योतित करनेवाली घटनाओं से हआ है। पुनः कुछ बिम्ब उपमान या अप्रस्तुत से निर्मित हैं तो कुछ उपमेय या प्रस्तुत से । कल्पना की