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अपभ्रंश-भारती-2
- वही
(6) सो सुयणु सहावे सच्छमइ, गुणदोस परिक्खहि नारुहइ । गुण संपइ पयडइ दोसुछलु, अब्भासे जाणतो वि खलु ॥
- वही - ऐसा स्वभाव से स्वच्छमति सज्जन (किसी के) गुण-दोषों की परीक्षा में अयोग्य होता
है - अर्थात् उस ओर उसकी प्रवृत्ति नहीं जाती, परन्तु दुर्जन अपने अभ्यास (आदत) दोष से जानता हुआ भी दूसरों के गुणों को तो ढंकता है और झूठे दोष को प्रकाशित
करता है । 4. वदनक
यह 16 मात्रिक छंद है । गणयोजना सामान्यतः 6+4+4+2 है । अन्तिम दो मात्राएँ लघु होनी चाहिए । उदाहरण -
(1) रामे जणणि ज जे आउच्छिय । . णिरु णिच्चेयण तक्खणे मुच्छिय ॥
- पउमचरिउ, 23.4 - राम ने जब माँ से इस प्रकार पूछा तो वह तत्काल अचेतन होकर मूर्छित हो गयी। (2) चमरुक्खेवै हिँ किय पडवायण ।
दुक्खु-दुक्खु पुणु जाय सचेयण ॥ - चमर धारण करनेवाली स्त्रियों ने हवा की । बड़ी कठिनाई से वह सचेतन हुई । (3) णीलक्खण णीरामुम्माहिय । पुणि वि सदुक्खउ मेल्लिय धाहिय ॥
- वही - लक्ष्मण और राम के बिना व्यथित वह दुखी होकर पुकार मचाने लगी । (4) पई विणु को हय-गयहुँ चडेसइ । पई विणु को झिन्दुऍण रमेसइ ॥
- वही - तुम्हारे बिना अश्व और गज पर कौन चढ़ेगा ? तुम्हारे बिना कौन गेंद से खेलेगा ? (5) पई विणु को पर-बलु भजेसइ । पइँ विणु को मई साहारेसइ ॥
- वही - तुम्हारे बिना कौन शत्रु-सेना का नाश करेगा ? तुम्हारे बिना कौन मुझे सहारा देगा।
जिणु अविउलु अविचलु वीसत्यउ । थिउ छम्मासु पलम्विय-हत्थउ ॥
प.च. 2.12 - जिन भगवान, छह माह तक हाथ लम्बे किये हुए अविकल, अविचल और विश्वस्त रहे। 5. मदनावतार
यह 20 मात्राओंवाला छद है । सामान्यतया गण योजना 5+5+5+5 है । उदाहरण - (1) के वि सण्णद्ध समरङ्गणे दुज्जया,
के विभामण्डलाइच्च - चन्दद्धया । के वि सिरि-सस - आवरिय - कलस-डया, के विकारण्ड-करहंस कोञ्चद्धया ॥
प. च. 60.5