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________________ अपभ्रंश - भारती-2 हृदय की ममवेदना ही मुखरित होती है । वर्णन चाहे जिस दृश्य का हो, व्यंजना हृदय की कोमलता और मर्मवेदना की ही होती है । 63 इस प्रकार कहा जा सकता है कि अपभ्रंश काव्य में प्रकृति-चित्रण आलंबन और उद्दीपन दोनों ही रूपों में हुआ है । महाकाव्यों में स्वतंत्र प्रकृति-वर्णन मिलता है । खण्ड-काव्यों में यत्र-तत्र । शृंगारी काव्यों में ऋतु-वर्णन जैसी परंपरा के कारण कवियों को प्रकृति की ओर झाँकने का विशेष अवसर मिल जाता है । षड्ऋतु का वर्णन काव्य में संयोगसुख या विरहदुःख को तीव्रतर दिखाने के लिए किया गया है । 1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, चिन्तामणि, प्रथम भाग, पृ. सं. 21 1 2. लंका तोरणमालि आतरलिणो कुंभुब्भवस्सागमें, मंदा दोलिअचंदणमलदाकप्पूर संपक्किणो । कंकोलीकुलकंपिणो फणिलदाणिप्पंद णेहावआ, चंड चुबिद तं बपण्णिसलिला वाअंति चेतानिला ॥ 3. स्वयंभूदेव, पउमचरिउ, 28.2 । 4. वही, 28.3 । 5. वही 1.4 । 6. वही, 69.2 । 7. वही, 69.3 । 17.2.13, 28.13, 70.14-15 | 18. वही, 83.10 19. वही, 39.12-13 । 23 राजशेखर, कर्पूरमंजरी, 1/7 8. वही, 31.3 1 9. वही, 36.1 1 10. वही, 14.3 1 11. पुष्पदन्त, महापुराण या तिसट्ठिमहापुररिसगुणालंकार, भाग, 1-3, सं. डॉ. पी. एल. वैद्य । 12. वही, 4.18, 19, 16, 26 । 13. वही, 4.16, 16.24 । 14. वही, 4. 15, 13.8 1 15. वही, 73.2 । • 16. वही, 12, 5-8 । 20. वही, 73.2 । 21. वही, 28. 34.1-7 । 22., 12.5, 29.30, 12.6, 12.7 I 23. वही, 2.13 । 24. वही, 28.13, 10-11 । 25. वही, 5.3 12-14 । 26. धनपाल धक्कड़, भविसयत्तकहा, सं., श्री दलाल और गुणे, गायकवाड़ ओरियंटल सीरीज, ग्रंथांक 20 ।
SR No.521852
Book TitleApbhramsa Bharti 1992 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size11 MB
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