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अपभ्रंश-भारती-2
कमल परिमल आमिलिय अलिउल
तो णिवेण लोएण सरवरं, लक्खिय असेस पि मणहरं । णीलरयण पालीऐं पविउल, कमलपरिमलामिलिय अलिउल । अमरललणकय कीलकलयल, चलियवलियउल्ललियझसउल । कलमरालमुहदलियसयदल, लुलियकोलउलहलियकंदल । पीलुलीलपयचलियतलमल, गलियणलिणपिंगहुयजल । अणिलविहुयकल्लोलहयथल, तच्छलेण ण छिवइ णहयल । पत्थिउ व्व कुवलयविराइय, पुंडरीयणियरेण छाइय । करिरहंगसारंगभासिय, छंदयं विलासिणि पयासिय । घत्ता-सरु पेच्छेवि लोउ, हरिसे कहिँ मि ण माइउ । माणससरे णाई अमरणियरु संपाइउ ॥
सुदंसणचरिउ,
7.16
- तभी राजा व अन्य लोगों ने सरोवर की ओर लक्ष्य किया, जो समस्तरूप से मनोहर था । वह अपने नील रत्नों की पक्ति से अतिविपुल दिखाई दे रहा था । वहाँ कमलों की सुगंध से भ्रमरपुंज आ मिले थे । देवललनाओं की क्रीड़ा का कलकल शब्द हो रहा था । मछलियों के पुंज चल रहे थे, मुड़ रहे थे और उछल रहे थे । कलहंसों के मुखों द्वारा शतदल कमल तोड़े जा रहे थे, तथा डोलते हुए वराहों के झुण्डों द्वारा जड़ें खोदी जा रही थीं । हाथियों की क्रीड़ा से उनके पैरों द्वारा नीचे का मल (कीचड़) चलायमान होकर आ रहा था । कमलों की झड़ी हुई रज से जल पिंगवर्ण हो रहा था । पवन से झकोरी हुई तरंगों द्वारा थलभाग पर आघात हो रहा था, मानो वह उसी बहाने नभस्तल को छू रहा हो । वह सरोवर नील-कमलों (कुवलयों) से शोभायमान, श्वेत-कमलों के समूहों से आच्छादित, हाथियों, चक्रवाक पक्षियों तथा चातकों से उद्भासित था, अतएव वह एक राजा के समान था, जो कुवलय (पृथ्वी-मण्डल) पर विराजमान प्रधानों के समूह से शोभायमान तथा हाथियों, रथों और घोड़ों से प्रभावशाली हो। उस सरोवर को देखकर लोग हर्ष से कहीं समाए नहीं, मानो दवों का समूह मानस-सरोवर पर आ पहुँचा हो।
• अनु. डॉ. हीरालाल जैन