SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश-भारती-2 131 पुत्र भी पूछा गया, उसके द्वारा भी कहा गया - रात्रि में सिद्धान्त और धर्म के उपदेश में लीन पत्नी के द्वारा संसार में असार के दर्शन से और भोगविलास के परिणाम के दुखदाई होने से, वर्षा नदी के जल-प्रवाह के समान यौवनावस्था के कारण और देह की क्षणभंगुरता से, जगत में धर्म ही सार (है), इस प्रकार बताया गया । मैं सर्वज्ञ के धर्म का आराधक बना, आज पाँच वर्ष हुए । इसीलिए बहू के द्वारा मुझको लक्ष्य करके पाँच वर्ष कहे गए, वह सत्य है । इस प्रकार कुटुम्ब के लिए धर्म-लाभ की वार्ता से विदुषी पुत्रवधू के यथार्थ वचन को सुनकर लक्ष्मीदास भी ज्ञानी (हुआ) और बुढ़ापे में (उसके द्वारा) भी धर्म पाला गया। उसने सपरिवार सन्मार्ग प्राप्त किया ।
SR No.521852
Book TitleApbhramsa Bharti 1992 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy