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________________ अपभ्रंश-भारती-2 जुलाई, 1992 107 सन्देश-रासक काव्य-विधा और विश्लेषण • डॉ. त्रिलोकीनाथ 'प्रेमी 'सन्देश-रासक' 12वीं शताब्दी की मुसलमान कवि अब्दुल रहमान कृत धर्मेतर-साहित्य की अपभ्रंश-काव्य कृति है जिसमें किसी बृहत् कथा-सूत्र को न सैंजोकर लोक-जीवन के अंतस में प्रवहमान नारी-हृदय की विरह-मार्मिकता को चित्रित किया गया है । भारतीय-वाङ्मय के प्रणय-काव्यों में विरह-निरूपण काव्य की विशिष्ट विभूति रहा है । कारण, इसके सहारे जहाँ इन काव्यों में पूर्णता और समग्रता का समावेश होता है, वहाँ कवि-कल्पना भी इसकी गहराई में पैठकर अद्भुत भाव-रत्न खोज लाती है । संयोग की सुखद-स्नेह-संयुक्त घड़ियों के उपरांत वियोग की क्षणिक किन्तु असह्य स्थिति में अतीत-स्मृतियों और पुनर्सयोग की आशा ही विरह-जर्जर-हृदय को बाँधे रहती है - 'आशाबन्धः कुसुमसदृशं नायशो हांगनानां सद्यः पाति प्रणयि हृदयं विप्रयोगे रुणद्धि' - मेघदूत, 10, (पूर्व मेघ) । किन्तु, मिलन के पल ज्यों-ज्यों समीप आने लगते हैं, संयोग की उत्कट लालसा तया प्रकृति द्वारा भावों के उद्दीपन से प्रणयी-पात्रों की आतुरता अतीव बलवती हो जाती है । इस अवस्था में ही विरही मन अपने किसी अंतरंग मानव या मानवेतर जीव के निकट जाकर मर्म-वेदना को, प्रिय से निवेदन करने के लिए व्यक्त करने लगता है अथवा जड़-प्रकृति पर ही चेतन का आरोप कर उससे निज पीड़ा-व्यथा कहने लगता है । काव्य में विरह-वर्णन की ये दोनों ही शैलियाँ उपलब्ध होती हैं । लोक-प्रचलित ग्राम-गीतों में भी भावाभिव्यंजना का यह सौन्दर्य उनकी अनूठी निधि है । प्राचीन काल में जब पुरुष अर्थार्जन-हेतु परदेश जाते थे और निश्चित अवधि के बाद नहीं लौट पाते थे, तब ग्राम-वधुएँ उन नगरों को जानेवाले राहगीरों के हाथ प्रियतम के लिए सन्देश-प्रेषण करती थीं । प्रस्तुत रासक में इसका स्पष्ट संकेत है जो इसके लोक-संस्पर्श का परिचायक है।
SR No.521852
Book TitleApbhramsa Bharti 1992 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1992
Total Pages156
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size11 MB
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