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ग्रपभ्रंश भारती
नुकीले दाँत थे, समुद्र जीभ, पर्वत भयंकर दाढ़, मेघ नेत्र और चंद्रमा उस निशा निशाचरी का
तिलक था ।
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स- णिसियर वस दिसह पधाइय । महि गयणोट्ठ डसेवि संपाइय ॥ गह-णक्खत्त-दंत उदंतुर उवहि-जीह- गिरि दाढ़ा भासुर 11 घर - लोयर ससि तिलय - विहूसिय ।
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7. मानवेतर - प्रारणी-बिंब
प्राकृतिक बिंबों के अतिरिक्त स्वयंभू ने अनेक मानवेतर प्राणियों के भी बिंब-योजना की है । उन्होंने पशु-पक्षियों के सुदंर चित्र सर्वाधिक बिब हाथी और सिंह के हैं । कहीं हाथी और सिंह के रूप । दो वीरों के संघर्ष में प्रायः हाथी और सिंह का युग्मबिंब प्रस्तुत किया गया है ।
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26.19.3-5
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गुलुगुलंतु हलहेइ महग्गउ सेय- पवाह- गलिय गण्डत्थलु पिच्छावलि प्रलिउल-परिमालिउ । वित्थिय वाण विसाण भयंकरु ।
गरजता हुश्रा रामरूपी महागज, उस विशाल वृक्ष की गिरि-कंदरा से निकल आया । दो तूणीर ही उसका विपुल कुंभस्थल था । पुंखावलीरूपी भ्रमरमाला से वह व्याप्त हो रहा था । करधनी की घंटियों से झंकृत हो रहा था । विशाल वाणों रूपी दाँतों से वह भयंकर था । स्थूल और लंबे बाहु ही उसकी विशाल सूंड थी ।
प्रस्तुत किये हैं। युग्मरूप हैं तो कहीं स्वतंत्र
तरुवर- गिरि-कंदरहीँ
विणिग्गउ कुंभत्थलु तोरणा - जुयल - विउल foकिणि गेज्जा - मालोमालिउ थोर पलम्व वाहु-लम्विय करु
आधार पर पशुओंों में
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भो सुरकरि-कर-संकास भुश्र
वेढिज्जइ जीउ मोह मऍहि । पंचाणणु जेम मत्त गएँहि ॥
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26.13.1-4
चंद्रनखा की दशा देखकर खर उसी तरह भड़क उठता है जिस तरह गज की गंध पाकर सिंह भड़क उठता है ।
केसरि मयगल-गंध-लुद्धु ।। 37.7.7
हनुमान रावण से कहता है- "अरे, ऐरावत की सूंड की तरह प्रचंड बाहु. यह जीव, मोह मद से वैसे ही घेर लिया जाता है जैसे मत्त गज सिंह को घेर लेता है ।
54.12.2-3
सिंह और मृग का बिंब भी स्वयंभू के लिए प्रिय है जिसका प्रयोग वे बार-बार करते हैं । खर-दूषण राम और लक्ष्मण से उसी प्रकार भिड़े जिस प्रकार हरिणों का झुंड सिंह से भिड़ता है ।
भिडिय राम-लक्खणाहँ । जिह कुरंग वारणाहँ ।। 45.9.10