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________________ अपभ्रंश - भारती कहि मि सरस तम्बोलारत्तउ । कहि मि वउल- कायम्बरि-मत्तउ ॥ कहि मि फलिह कप्पूरेहि वासिउ । कहि मि सुरहि मिगमय वामोसिउ ॥ कहि मि वहल - कुङ्कुम-पिञ्जरिउ । कहि मि मलय-चन्दरण रस भरियउ ॥ कहि मि जक्खकद्दमेरण करविउ । कहि मि भमर रिछोलिहि चुम्बिउ || विदुम मरमय इन्दरगील सय चामियर वहु-वष्णुज्जलु णावइ णहयलु सुरघणु घरण हार संघाएँ । विज्जु वलायहि ||2 - - रमणियों का छूटा हुआ काजल, सुगन्धित चूर्ण के धुल जाने से जल पर मंडराते भ्रमरदल प्रकाश में स्थित मेघों की भांति कलौंहे हैं, कहीं गिरे हुए मणिमय आभूषणों के लाल, हरे, नीले, सुनहरे रंग तो कहीं केसर श्रादि चूर्ण से पीले पड़े जल में मानो इन्द्रधनुष ही उतरा है । चन्द्रमा और कुन्द पुष्पों से हुए शुभ्र निर्मल जल में बिजली की कौंध है और टूटेगिरे मोतियों के हारों में उड़ती बगुलों की पांति की धवलता और गति का भ्रम । नदी भी सजधज गई है | इन्द्रधनुष, मेघ, बिजली और बगुलों के साथ आकाश ही नदी में उतर आया है । इस पूरे रंग चित्र को विशेषता यह है कि किसी भी रंग का नाम कहीं नहीं लिया गया, केवल रंग के साथ जुड़ी विशिष्ट वस्तु की सहज उपस्थिति से ही रंगों की योजना है। व्यतिरेकी और प्राथमिक रंगों की सन्निधि है अतः चटक और चमक सामान्य से अधिक उत्तेजक है । वह इतनी अधिक है कि वस्तुओंों की रेखाएँ कहीं रह ही नहीं जाती, रह जाते हैं कुछ रंग और प्रकाश और उनकी कौंध । इस प्रकार नदी के रूप में धरती - आकाश एक हो गए हैं 'छिति, जल, पावक, गगन और समीर' सभी अभिन्न । 67 व्यतिरेकी रंगीय स्थिर चित्र - कवि ने व्यतिरेकी रंगों की सन्निधि के सौंदर्य को केवल गति में ही नहीं पकड़ा है, स्थिर चित्रों में भी उनकी चटक बिखेरी है । एक ऐसा स्थिर चित्र कवि ने उस समय प्रस्तुत किया है जब वह वन में रावण के अन्तःपुर का वर्णन करने में दत्तचित्त है · तं तेहउ रावण केरउ अन्तेउरु संचल्लियउ 1 रणं सभमरु मारणस - सरवरें कमलिरिंग वणु पष्फुल्लियउ || सीता के पास वन में रावण का अन्तःपुर चल कर आया है । सभी पास-दूर की चुनी हुई सुन्दरियां हैं, गौर वर्ण है, शृंगार की दीप्ति एवं हाव-भाव से युक्त हैं । उनके मुखमण्डल रक्तिम प्राभा से युक्त हैं । खाने-पीने और बड़े होने की एक निराली चमक है । उनके चेहरे खिले हुए हैं, स्निग्ध और कोमल हैं । मुख के आस-पास अलकें बिखरी हुई है । रानियां दुग्ध-धवल मोतियों के बने हार-दोरु पहने हैं । मोतियों की दुग्ध धवलिमा में सफेद - स्वच्छ मानसरोवर की भ्रान्ति उत्पन्न हो रही है । पूरा चित्र इस प्रकार उभरता हैदुग्ध-धवल जलवाले मानसरोवर में लाल कमल खिले हैं जिन पर रसपान के लिए काले भौंरे मंडरा रहे हैं । इन रंगों में श्रृंगार की एक तरलता घुली हुई है । लाल, काले और सफेद रंग से बने इस चित्र में प्राथमिक रंगों की चमक है और व्यतिरेक की चटक भी ।
SR No.521851
Book TitleApbhramsa Bharti 1990 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1990
Total Pages128
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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