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अपभ्रंश भारती
भक
संकृ
-पुल्लिग -प्रेरणार्थक क्रिया
-भविष्य कृदन्त भवि -भविष्यत्काल भाव -भाववाच्य
-भूतकाल -भूतकालिक कृदन्त
-वर्तमानकाल वकृ -वर्तमान कृदन्त वि -विशेषण विधि -विधि विधिकृ -विधि कृदन्त
-सर्वनाम
-सम्बन्धक कृदन्त सक -सकर्मक क्रिया सवि -सर्वनाम विशेषण
-स्त्रीलिंग
-हेत्वर्थ कृदन्त ( ) -इस प्रकार के कोष्ठक में
मूल शब्द रक्खा गया है। [( )+( )+( )....] इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर+चिन्ह किन्हीं शब्दों में संधि का द्योतक है। यहां अन्दर के कोष्ठकों में गाथा के शब्द ही रख दिए गए हैं। [( )-( )-( )....] इस प्रकार के कोष्ठक के अन्दर '-' चिन्ह समास का द्योतक है। • जहां कोष्ठक के बाहर केवल संख्या (जैसे 1/1, 2/1.."प्रादि) ही लिखी है वहां उस कोष्ठक के अन्दर का शब्द 'संज्ञा' है।
स्त्री
• जहां कर्मवाच्य, कृदन्त आदि अपभ्रंश के नियमानुसार नहीं बने हैं वहां कोष्ठक के बाहर 'अनि' भी लिखा गया है। 1/1 अक या सक -उत्तम पुरुष/
एकवचन 1/2 प्रक या सक -उत्तम पुरुष/
बहुवचन 2/1 अक या सक -मध्यम पुरुष/
एकवचन 2/2 प्रक या सक -मध्यम पुरुष
बहुवचन 3/1 प्रक या सक -अन्य पुरुष
एकवचन 3/2 अक या सक -अन्य पुरुष/
बहुवचन 1/1-प्रथमा/एकवचन 1/2-प्रथमा/बहुवचन 2/1-द्वितीया/एकवचन 2/2-द्वितीया बहुवचन 3/1-तृतीया/एकवचन 3/2-तृतीया/बहुवचन 4/1-चतुर्थी/एकवचन 4/2-चतुर्थी/बहुवचन 5/1-पंचमी/एकवचन 5/2-पंचमी/बहुवचन 6/1-षष्ठी/एकवचन 6/2-षष्ठी/बहुवचन 7/1-सप्तमी/एकवचन 7/2-सप्तमी/बहुवचन 8/1-संबोधन/एकवचन 8/2-संबोधन/बहुवचन