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________________ (ii) अपभ्रंश भारती शब्दावली प्रोफल हो गई । इतिहास और परम्परा की श्रृंखला टूट गई। इस तरह अपभ्रंश भाषा और साहित्य को भुलाकर हमने अपनी पहचान ही नहीं खो दी वरन् राष्ट्रीय एकता को भी किनारे कर दिया। सिद्धों और नाथों की शब्दावली समझ से परे हो गई । कबीर, सूर, तुलसी और जायसी की रचनाओं में अपभ्रंश शब्द- शब्दरूपों, क्रिया- क्रियारूपों की बहुलता है, अपभ्रंश की इन शब्दावलियों से पूर्ण परिचय न होने के कारण उनके ( उनकी रचनाओं) के सम्यक् अर्थ न समझे जा सके । अपभ्रंश साहित्य अकादमी का का प्रयास है अपभ्रंश के अध्ययन-अध्यापन को सशक्त करके उसके सही रूप को सामने रखना जिससे श्राधुनिक प्रार्यभाषानों के स्वभाव और उनकी संभावनाएं स्पष्ट हो सकें। शोध पत्रिका 'अपभ्रंश-भारती' इसमें सहायक हो सकेगी । 'स्वयंभू' अपभ्रंश के पुरस्कर्ता हैं । वे प्रपभ्रंश के प्रथम ज्ञात कवि हैं। 'अपभ्रंश ' भाषा पर ऐसा अचूक अधिकार फिर कभी किसी कवि का नहीं दिखाई दिया। प्रलंकृत भाषा तो बहुतों ने लिखी लेकिन ऐसी प्रवाहमयी और लोकप्रचलित 'अपभ्रंश' फिर नहीं लिखी गई । वे पहले बिन्दु पर भी हैं और आखिरी पर भी । उन्होंने लोकभाषा अपभ्रंश को उच्च आसन पर प्रतिष्ठित किया । स्वयंभू ने लोकभाषा की संभावनाओं को साहित्यिक सौन्दर्य से इतने गहरे उतरकर जोड़ा कि उनको साहित्यशास्त्री प्राज तक नाम भी नहीं दे पाए। इस तरह स्वयंभू असाधारण प्रतिभा के धनी थे । 'अपभ्रंश भारती' के एकाधिक अंक महाकवि स्वयंभू के साहित्य पर ही प्राधारित होंगे। यह प्रथम अंक भी स्वयंभू विशेषांक के रूप में प्रस्तुत है । पत्रिका के लेखकों एवं अन्य सभी सहयोगियों के प्रति आभारी हैं। जर्नल प्रेस भी धन्यवाद है । ज्ञानचन्द्र विन्दूका डॉ. कमलचन्द सोगारणी डॉ. छोटेलाल शर्मा
SR No.521851
Book TitleApbhramsa Bharti 1990 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1990
Total Pages128
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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