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अपभ्रंश-भारती
घत्ता-अमर-महाषण-गहिय-करु मेह-गइन्दे च. वि जस-लुद्धउ ।
उप्परि गिम्भ-रणराहिवहाँ पाउस-राउ णाई सण्णद्धउ ॥9॥
(5)
पसरइ (पसर) व 3/1 अक मेह-विन्दु [(मेह)-(विन्दु) 6/2] गयणगणे [(गयण) + (अङ्गणे)] [गयण)-(अङ्गण) 7/1] जेम (अ)=जिस प्रकार सेण्ण (सेण्ण) 1/1 समरङ्गणे [ (समर)+ (अङ्गणे) ] [ (समर)-(अङ्गण).7/1], __ (1)
तिमिरु (तिमिर) 1/1 अण्णाणहो (अण्णाण) 6/1 वुद्धि (बुद्धि) 1/1 वहुजाणहो (वहु-जाण) 6/1 वि,
(2) ___पाउ (पान) 1/1 पाविट्ठहो (पावि+ इ81- पाविट्ठ) 6/1 वि धम्मु (धम्म) 1/1 धम्मिट्ठहो (धम्म+इट्ठ→धम्मिट्ठ) 6/1 वि,
(3) 1. इट्ठ = इष्ट (तुलनात्मक विशेषण के लिए लगाया जाता है) अभिनव प्राकृत व्याकरण, पृष्ठ 261 ।
जोण्ह (जोण्हा) 1/1 मयवाहहो [ (मय)-(वाह) 6/1 वि] कित्ति (कित्ति) 1/1 जगणाहहो [ (जग)-(णाह) 6/1],
(4) चिन्त (चिन्ता) 1/1 धण-हीणहो [(धण)-(हीण) 6/1] कित्ति (कित्ति) 1/1 सुकुलोणहो (सु-कुलीण) 6/1,
सद् (सद्द) 1/1 सुर-तूरहो [(सुर)-(तूर) 6/1] रासि (रासि) 1/2 पहे (रणह) 7/1 सूरहो (सूर) 6/1,
दवग्गि (दवग्गि) 1/1 वणन्तरे [ (वण) + (अन्तरे)] [ (वण)-(अन्तर) 7/1] मेह-जालु [ (मेह)-(जाल) 1/1] तिह (अ)= उसी प्रकार अम्वरे (अम्बर) 7/1, (7)
तडि (तडि) 1/1 तडयडइ (तडयड) व 3/1 अक पडइ (पड) व 3/1 अक घणु (घण) 1/1 गज्जइ (गज्ज) व 3/1 अक जाणइ' (जाणई) 6/1 रामहो (राम) 6/1 सरणु' (सरण) 2/1 पवज्जइ (पवज्ज) व 3/1 सक,
(8) 1. जाणई=जानकी, 2. 'गमन' अर्थ में द्वितीया का प्रयोग होता है।
अमर-महाधणु-गहिय-करु [(अमर)-(महा) वि-(धणु)-(गहिय) भूक(कर) 1/1] मेह-गइन्दे [(मेह)-(गइन्द) 7/1] चडेवि (चड+एवि) संकृ जस-लद्धउ [(जस)-(लद्ध) भूक 1/1 अनि 'अ' स्वार्थिक] उप्परि (अ)=ऊपर गिम्भ-गराहिवहो [(गिम्भ)-(रणराहिव) 6/1] पाउस-राउ [(पाउस)-(राय) 1/1] णाई=णाई (अ)=मानो सण्णद्धउ (सण्णद्ध) भूकृ 1/1 अनि 'अ' स्वाथिक,
(9) जिस प्रकार युद्ध के क्षेत्र में सेना फैलती है (और) आकाश के क्षेत्र में जल-कणों का समूह फैलता है (1); जिस प्रकार प्रज्ञान (रूपी अँधेरी रात) का अन्धकार फैलता है, जिस प्रकार बहुत प्रकार के ज्ञान रखनेवाले की बुद्धि फैलती है (मजबूत होती है) (2);
(6)