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अपभ्रंश-भारती
2.2.20 पातु+कियार्थक प्रत्यय
1. रणं मुच्छऍ किउ सहियत्तणउ, जं रक्खिउ जीवुगमणमणउ ।।4 2. अज्ज वि ममरेहिव कमल-सरे । अच्छेवउ वरिस विराड घरे ।।4ए 3. प्राय सव्वई वचेवाइं, इंदियई पंच खंचेवाई। 54बी
2.2.21 क्रियार्थक रूप + कर्तृत्व प्रत्यय
1. सामिय पसाय-सय-रिण-मणाहं, वन्दियजण-अरिणवरिय-धणाहूँ ।।
2. तुहुँ दीसइ दणु माहप्प चप्पु 156 ___3.. हरि धुरे देप्पिणुधएँ विजउजणहों पेक्खन्तहों।
णिग्ग उ इन्दइ णं बंधणारु हणुवन्तहों ।
2.2.22 पक्षपरिमाणक जाम-ताम+क्रियाभ्यास
1. लेइ ण लेइ जाम मरु णन्दणु, ताम पधाइउ वरणु स-सन्दणु 158
2. करें धणुरुह लेइ ण लेइ जाम, सकलत्तउ लक्खणु दिट्ठ ताम 150 . 3. किरजाम भिडन्ति भिडन्ति णं वि ताव णिवारिय वारऍहिं 160
4. भिडइ ण भिडइ जाम्ब णल-पील गरवराहँ, ताम्ब विहीसण रहु
दिण्णअंतराले 161
2.23 पक्ष परिमाणक जाम-ताम+तात्कालिक व्यापारसूचक मूल क्रिया
1. एव भणेवि लेइ किरजावहिं, लोरिणउ जेम विलेविय तावहिं 162 2. एत्तडिय परोप्परु बोल्लजाम, चित्तंगुस-सन्दणु पाउताव 163 3. किर अवरु चाउ करें चडइ जाम्ब, सयखंड-खंडुरह कियउ ताम्ब 164
उप्पएँ विजाम, किरधरइ पुरन्दरु पत्तुताम । 5. हणुवन्ते महोअरु सिडिउजाम, सोजम्बुमालि सम्पत्तु ताम्ब 166 6. धणु सव्वहाँ लक्खण विरहियेह, लइउलइउ हत्थहों पडइ ।
22.24 कारण-कार्य विपर्यय
1. मणि रोसु पवट्ठिउ वल्लहहों, किरदेइ दिट्ठतरु पल्ल्वहो ।
सातत्य बोधक पक्ष-सातत्य बोधक 'पक्ष' से कार्य-व्यापार के उक्ति के शून्य बिन्दु या किसी संदर्भ समय में जारी रहने की अस्थिर अवस्था का ज्ञान होता है। इसमें प्रवधिपरक क्रिया विशेषणों का प्रयोग संभव है। स्वयंभू ने इस प्रकार के व्यापार से संबंधित अनेक मंगिमानों को गूंथा-पिरोया है2.3.0 वर्तमानकालिक कृदन्तरंजक क्रिया
1. णिय लील( सीया-सुरवइ, सई अच्छरहिं रमन्तु थिउ 169 2. जे विरमन्ता मासि लक्षण रामहु संकेवि ।
परवड सुरयासत्त प्रावण थिय मुहु ढंकेवि । 70