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अपभ्रंश-भारती
पूर्णत्वद्योतक
1 प्रारम्भत्वद्योतक
2
3
अपूर्णत्वद्योतक स्थित्यात्मक
सातत्यद्योतक
प्रारंभत्व प्रारंभ पूर्वस्व
द्योतक
द्योतक
यक्ष
1
12.
T पौनः पुन्य
द्योतक
2.10 भूतकालिक कृदन्त + रंजक क्रिया 'प्रासी'
1. hard सच्चु जं दिपा प्रसि
2.
3.
4.
कहिउ प्रासि महु परम जिरिन्दें 1 29
पेसिय वेवि प्रासि देसन्तर 130
नित्यत्वद्योतक
5.
6.
· 7.
8. कहि सि सि जो चरणेहि । 35
9.
10.
11.
5
उत्परिवर्तनद्योतक
सातत्यद्योतक
वर्धमानत्व द्योतक
2.1 पूर्णत्व बोधक पक्ष — इसमें व्यापार समग्ररूप से पूर्ण होता है और घटनारूप में देखा जाता है जो प्रकरण अथवा संदर्भाश्रित रहता है । इसमें 'रंजक क्रिया' की वरिंका कार्य व्यापार की पूर्णता को एक निरपेक्ष प्रायाम प्रदान करना है जो प्रांशिक पक्षात्मक लक्षणों से युक्त होने के कारण 'नियमित चिह्नक वर्ग' में नहीं आती। इसका मुख्य क्रियाओं से सह प्रयोगात्मक संबंध है । यह क्रिया के कोशीय अर्थ को तो प्रभावित करती है, लेकिन व्याकरणिक अर्थ में नहीं । स्वयंभू ने 'आसी' और 'सि' रंजक क्रिया का चिह्नक रूप में अधिक प्रयोग किया है
अभ्यास प्रगतिद्योतक द्योतक
28
विज्भु इमु मंडलु, बहुचिन्तिय फलु, सि समप्पिड वप्पें 131
मित्तियहि प्रासि जं वुत्तउ | 32
अट्ठाव होन्तु ण वि तावट्टइ प्रासि माएँ गिलिउ 133
जाश्रो सि सि कासी विसऍ 1 34
जासि श्रासि हउं सरण पयट्टउ 136 जं लइ श्रासि पुण्णेहि विणु......... रिसि णिसियरि ऍ प्रसि जं गिलियउ .......
137
138
एउ गं जाणहुं प्रासि किउ अम्हहिं को प्रवराहो 139
39
2.11 भूतकालिक कृदन्त + रंजक क्रिया 'सि' -
1. रिणमन्ति सि इन्द्रेणदेव 140
2.
लाइ तुज्भु जुज्भु एत्तडउकाल, ढुक्का सि सीहदन्तन्तरालु 141 सो लक्खि सिसई लोयहि 142
3.
समाप्तिद्योतक